कविता
काश………….
काश मैं गीत होता
कभी किसी सुनहरी शाम को
तुम छत पे खड़ी होतीं, तनहा
मैं चला आता, बेसाख्ता
तुम्हारे दिल से उठ कर
सुराहीदार गरदन के रस्ते
तुम्हारे नाजुक लबों को छू लेता
तुम हौले हौले मुझे गुनगुनातीं
अकेली ही मुस्कुरातीं
मैं थोड़ी देर खेलता
समय के साज़ पर
और रक्स करता
तुम्हारी ही आवाज़ पर
फिर हल्की सी जुम्बिश देकर
तुम्हारे लरज़ते होंठों को
मैं घुल जाता हवाओं में
हमेशा के लिए
काश…………
काश मैं ख्वाब होता
किसी दिन नीम अँधेरे में
जब तुम सो रही होतीं
नर्म तकिए पे सर रख कर
मैं चुपके से चला आता
तुम्हारी ख्वाबगाह में
और छा जाता
तुम्हारी बंद आँखों पे
तुम मुझे देख के
हलके से कुनमुनातीं
थोड़ा बड़बड़ातीं
उन अस्पष्ट से शब्दों में
मैं सुन लेता वो सारी बातें
जिन्हें सुनने की हसरत
दिल में लिए लिए
मैं तुमसे जुदा हो गया
हमेशा के लिए
काश…………
काश मैं फूल होता
एक दिन उग जाता
तुम्हारे आँगन में, अनायास
उसी क्यारी में
जो तुमने बनाई थी
अपने नर्म हाथों से
तुम मुझे देख के खुश होतीं
थोड़ा सहलातीं
फिर एक लंबी सांस खींच कर
मेरी खुशबू भर लेती
अपने भीतर दूर तक
मानो बसाना चाहती हो
अपनी रूह में मुझको
फिर चाहे तोड़ लेती
लगा लेती अपने गेसुओं में
और मेरी गंध घुल जाती
तुम्हारी घनी काली जुल्फों में
हमेशा के लिए
काश…………….
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।