लोकशाही
एक जमाने में पूरी दुनियां में राजा रानियों का राज था।सभी देशों में राजाओं का शासन था,और लोग उनकी प्रजा थे।कई राजा बहुत महान थे जो अपनी प्रजा के सुख दुःख का खयाल रखते थे,उनकी समस्याओं को जानने के लिए रात को भेष बदल कर गलियों में उनके साथ बैठते थे, क्योंकि अगर अपने असली रूप में उनके सामने कोई अपनी सही राय देने से कतराएंगे ।फिर उनके दुःख दर्द की समस्या को हल करने की कोशिश की जाती थी।
और अगर राजा सनकी होता था तो उसकी सनक की वजह से प्रजा को बहुत कुछ सहना पड़ता था।कभी कभी तो वे बहुत ही अत्याचारी भी होते थे तो प्रजा बहुत दुःखी हो जाती थी।और उसके बाद विदेशी शासकों के बारे में तो कुछ पूछो ही मत,देश को लूट खसोट कर आर्थिक ,मानसिक,सांस्कृतिक हरेक तरीके से दोहन कर अपाहिज सा बनाया और जाते जाते कुठराघात करते गए वो आज तक हम भुगत रहें हैं।
और पूरब से आजादी का सुनहरी सूरज का उदय हुआ और हम गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुए।आजादी आई साथ में लोकशाही लाई,जिसमे जनता की सरकार,जनता के द्वारा जनता के लिए–
Government of the people,by the people and for the people ,
जैसे अब्राहम लिंकन ने अपने भाषण में कहा था।
लेकिन ये जो नीव रखी गई थी लोकशाही की वो कुछ मतलबी नेताओं के लिए आशीर्वाद बन गई और देश में अफसरशाही ने घर कर लिया,गरीबी और अराजकता ने देश को ग्रस लिया और अज्ञानता ने देश को घेर लिया।कई समाज सुधारक आए जो वाकई में देश में हकारात्मक सुधार लाना चाहते थे और काफी सुधार हुए भी।किंतु हम ने लोकशाही को स्वछंदता समझा और सब अपने अपने हिसाब से लोकशाही का अवमूल्यन करने लगे।जो राजनैतिज्ञ थे वो अपनी ताकत बढ़ाने के लिए गुटबाजी पर उतर आए,अपनी वर्ण व्यवस्था को जातिवाद बना खूब उपयोग में लाएं।सब राजा नहीं बन सकते,सब राज भी नहीं कर सकते किंतु सब अपने आप को राज्य करने में समर्थ समझने लगे,राजा भोज हो तो फिर ठीक पर गंगू तैली कैसे राज करना सीखेगा, महत्वकांक्षाएं खूब बढ़ी और राजा बनने की होड़ में सभी प्रकार के अनाचार बढ़ गए,जो दिल में आए करना,किसी की भी राजकीय बैज्जती कर अपना स्थान मजबूत करना और पता नहीं क्या क्या।
तोता चश्म बन गया नेता चुनाव के समय आना मत लेने फिर मैं कौन तुम कौन?
सफल लोकशाही के लिए मतदाता का भी परिपक्व होना जरूरी हैं थोड़े से लालच में अपना बहुमूल्य मत को बेच कर पांच सालों तक अन्याय सहना ये नासमजी की निशानी ही हैं।
कहीं पढ़ा था,एक महिला बीच सड़क छाता लहराती मस्ती से चल रही थी और खुद लोकशाही में जी रही थी उसका प्रमाण दे रही थी किसी ने टोका भी कि वहां तो गाडियां चलती हैं उसे फुटपाथ पर ही चलना चाहिए किंतु वह टस से मस नहीं होते हुए वही चलती रही।ये क्या सही में लोकशाही हैं।नहीं लोकशाही में तुम्हारे जितने हक हैं वह दूसरों के भी हैं,अपना हक लेने के समय दूसरे के हक का भी ध्यान रखना चाहिए,बीच सड़क चलके तुम दूसरों के हक को नहीं मार सकते।
आधी रात को जोर जोर से गाना बजाना तुम्हार हक हैं किंतु आपके पड़ोसियों को भी आराम से सोने का हक़ हैं।अनुकूलन के साथ रहना लोकशाही में अनिवार्य हैं।
जो त्याग और शहीदी से आजादी को पाई हुई आजादी,जो एक अनमोल चीज हैं,जिसकी कद्र न हमने जानी और न ही अपने बच्चों को कद्र करना सिखाया।इस देश के विकास और प्रगति के लिए हमें भी प्रयास करना चाहिएं न कि हर बात में हक़ के लिए सोचे।देश को समृद्ध बनाना हैं तो उसके पर्यावरण का भी खयाल रखना चाहिए।कुदरती स्तोत्रो का जतन करना चाहिएं।पानी जो एक कुदरत की पवन देन हैं संसार को,उसका सही मात्रा और जरूरत के हिसाब से ही उपयोग में लेना चाहिए।
जब हम देश से कुछ चाहतें हैं तब हमने इस देश को क्या क्या दिया ये सोचना अति आवश्यक हैं।
ऐसी सब बातें अपने बच्चों, यानि कि भविष्य के नागरिकों को सिखानी अति आवश्यक हैं।
— जयश्री बिरमी