सन्तोष नहीं किसी को
सन्तोष नहीं है देखो आज
इस जमाने में
आज हर कोई लगा देखो
बस धन कमाने में।।
सर ढ़कने को छत है फिर भी
दो तीन बंगले चाहिए
बंगले कि चाहत में इंसा देखो
लगा है सर खपाने में ।।
तन ढ़कने को भरपूर कपड़े
होते हैं सभी के पास
फिर भी फैशन के पीछे भागे
इंसा बस दिखावे में ।।
पेट भरने को दो वक्त की
सबको रोटी ही चाहिए
जंक फूड के दीवाने बन
लगे पैसा बस उड़ाने में ।।
जिंदगी की आपाधापी में
रिश्ते खोते जा रहे
रिश्तों में आई दूरियां रिश्ते
लगे मुश्किल निभाने में।।
इंसा को इंसा के सुख-दुख से
आज मतलब ही न रहा
मतलबी हुई ये दुनिया देखो
जैसे लालच के वीराने में ।।
सच्चाई हर एक शब्द में मेरे
वीणा के तार बोले
कड़वी लगी सबको सच्चाई
ये आईना दिखाने में।।
— वीना आडवाणी तन्वी