जिसकी पूँछ उठाई
जिसकी पूँछ उठाई जाती,
निकल रहा है मादा।
अवसर जिसको मिले ‘सुनहरा’,
क्यों करनी में छोड़े,
राम नाम की ओढ़ चुनरिया,
अपना मुख वह मोड़े,
दस -दस पीढ़ी खाएँ,
बैठी मौज मनाएँ,
बाहर से है सादा।
बहुत जरूरी रँगना तन को,
राजनीति से रँग ले,
बन समाज का सेवी प्राणी,
राम श्याम का सँग ले,
झंडा एक लगा ले,
मुखड़ा देह सजा ले,
या बन गुंडा दादा।
‘कोई नहीं देखने वाला’,
सोच यही है तेरी,
पीकर के अमृत तू आया,
किंतु नहीं अब देरी,
होगी जब सुनवाई,
कुछ हो न सके हरजाई,
बतला नेक इरादा।
बोए बीज बबूल हाथ से,
आम कहाँ से खाए,
कपड़े रँगे जलें अर्थी में,
ऊपर नंगा जाए,
बहुत बड़ी लाचारी,
हुई जिंदगी ख़्वारी,
बोझ गधे का लादा।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’