ग़ज़ल
करम करे न करे हमपे ये है काम उसका
दिल पुकारता है हर घड़ी बस नाम उसका
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दस्तक जब भी होती है मेरे दरवाज़े पर
मैं समझता हूँ आया है कोई पैगाम उसका
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न आया है वो और न ही कभी आएगा
फिर भी है इंतज़ार सुबह – शाम उसका
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लुटाऊँ प्यार उसकी बेरूखी के बदले में
मैं कर रहा हूँ मेरा और वो काम उसका
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मेरी जुम्बिश-ए-मिज़गां की खबर है सबको
कौन देखेगा तमाशा-ए-लब-ए-बाम उसका
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।