गम ना देना
मेरी अच्छाई की ऐहसास
तुम्हें उस दिन जरूर होगा
कफन में लिपटा मेरी जनाजा
जब मेरी दर से बाहर निकलेगा
गम की अश्क तुम रोक नहीं पाओगे
पत्थर दिल को अपनी तुम
अन्दर अन्दर ही रुलाओगे
तुमने नफरत की काँटा
मेरी राहों में बिछाया था
मेरी पाँव लहू लुहान हो
फिर भी मुस्कुराया था
जब जब तुमने ईष्या की
बगिया मेरी जीवन में लगाया
गुलशन में मेरी हर दिन
रात रानी बन महकाया
तुमने चोट देकर मेरे
जिगर को किया था जख्मी
पर मैनें उस रब से
दुआ माँगी थी तब अपनी
मेरी अर्जी पर रब ने ही
किया था तुम पर उपकार
उस सावन में मैंने
सह लिया था तेरा तिरस्कार
कौन कौन सा जख्म तुमने
मेरे सीने पे सजाया था
हर जुल्म को मैनें
तकदीर समझ गले लगाया था
मैं तेरी अपकार से कभी
जीवन में ना घबराया
फिर भी तेरे मन में
मेरे लिये रहम ना आया
अपकार की बाजार तुमने
सस्ते में था भजाया
उस लमहा मेरे जख्म ने
था खून की आँसू बहाया
मेरे चेहरे के जख्म से
बहे थे अनगिनत आँसू
फिर भी उस भॅवर में
मुस्कुराने की थी मेरी आरजू
अय खुदा कभी इस तरह की
जिल्लत सी जीवन ना देना
ना दोगे खुशी का तोहफा
पर कभी मानव को गम ना देना
— उदय किशोर साह