माखन चोर
मां तू मुझे मक्खन खिलाती है,
मेरे सखा न माखन चख पाते,
उनके घर का सारा माखन,
कारिंदे कंस के ले जाते.
मैं इसलिए मक्खन चुराता हूं,
मेरे सखा भी माखन खा पाएं,
पर सबसे पहले मैं खाता,
मेरे सखा न दोषी कहलाएं.
“हेरत-हेरत पथ हार गईं,
आलि माखन चोर नहिं आयो”,
ये कहती हैं सारी गोपियां,
जा दिन वांको माखन नहिं खायो.
तब कहतीं हैं माखनचोर हूं मैं,
अब तू ही बता मां क्या बोलूं?
उनकी ऐसी बातें सुन-सुन,
क्या चुपके-से उनकी पोल खोलूं?
वे अपने लालों को माखन दें,
मैं माखन-चोरी छोड़ूंगा,
मैं कंस के जुल्मों से अपने,
नंदगांव को पिसने नहिं दूंगा.