गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रिश्तों के कई रूप आंखों में छिपा रखा है,
अपने सिने में हमने कई राज दबा रखा है।
मुस्कुराहट समेटने की बहुत कोशिश की हमने,
आँसुओं को  पिटारे  में  कैद कर बंद रखा है।
पिसते हुए जीवन में हमने सिर्फ दर्द पाया है ,
जीवन ने  तो हमे अपना बंधक बना रखा है।
कहां खोलें सीने में दहकती आग को अब ,
जमाने ने तो सबको ही नाराज कर रखा है।
अगर साथ दिया है किसी ने हमारा अपना तो,
एहसान तेरा ये जिन्दगी दर्द का घेरा बना रखा है।
दर्द से सनी जिन्दगी मोह हो गया अब मुझे तुमसे,
जीवन में रिश्ते को समझने का पैगाम दे रखा है।
समझ आ गया  जिन्दगी का गहरा नाता है दर्द से,
दुनिया में जीवन जीने का तूने ईनाम दे रखा है।
—   शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968