मुक्तक/दोहा

अख़बार के दोहे

नव ख़बरों को साथ ले, आता है जो रोज़।

सुबह उसी अख़बार की, हम करते हैं खोज।।
दुनिया भर के दृश्य जो, करता है साकार।
 उस कागज़ को हम सभी, कहते हैं अख़बार।।
घटना,दुर्घटना लिए, जो देता है सार।
देश और इस जगत में, वह तो है अख़बार।।
समाचार,साहित्य है, कला और व्यापार।
विज्ञापन से रह भरा, करे स्वप्न साकार।।
सुबह-सुबह बँटता सदा, हॉकर देता डाल।
पढ़कर हम सब हों सदा, नित ही बहुत निहाल।।
जिस दिन हमको नहिं मिले, पढ़ने को अख़बार।
लगता वह दिन हो गया, हम सबका बेकार।।
अख़बारी संसार में, ख़बरों का विस्तार।
जन-जन को दे चेतना, बिखराता उजियार।।
अख़बारों का तो जाल है, पेन-डायरी थाम।
कुछ ख़बरों के नाम पर, करते खोटा काम।।
मनगढ़ ख़बरों से करें, कुछ धन-अर्जन ख़ूब।
बने हुए जो झूठ के, कपट भरे महबूब।।
पर बनता रद्दी सदा, हो बासा अख़बार।
लगता वह अब व्यर्थ है, ठुकराता संसार।।
स्वारथ का संसार है, मतलब के आसार।
रहना बन ताज़े सदा, जैसे नव अख़बार।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]