लघुकथा

लघुकथा – टेढ़ा जवाब

अगहन पूस महीने में मदन हलवाई नया गुड़ और नए चावल की खुशबूदार मिठाई बनाता और मुहल्ले- मुहल्ले घूम -घूम कर बेचा करता है।
 अपने गाँव में  ग्राहकों की उदासीनता देख मदन ने मन ही मन कहा,”अपने मुहल्ले में कोई पूछ नहीं है मेरी मिठाई की। लेना-देना साढ़े बाइस, सिर्फ मोल- जोल।”
“कहाँ चल दिए मदन काका?” मदन को चिढ़ाने के लिए गाँव के एक छोकरे ने कहा।
“जहांँ इंसान का चेहरा नहीं उसका गुण देखते हैं लोग।” मदन हलवाई ने छोकरे को टेढ़ा जवाब देकर दूसरे गाँव की राह पकड़ ली।
— निर्मल कुमार डे

*निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com