कविता

तकरार

धर्म के नाम पर छिड़ी तकरार
एक दुजै पे हो रही है अब वार
धर्मयुद्ध की गरम है जग में बाजार
मार काट की खुल गई है व्यापार

ये कैसा प्रभु मौसम है आया
जगत वाले ने षड़यंत्र रचाया
धर्म के नाम पर हो रही तकरार
कैसी बह रही है जग में ये बयार

कैसा दिन जग को तुँ है दिखलाया
धर्म के नाम पर एक दुजै को भड़काया
कौन समझायेगा जब जग है अनजान
तुम ही कुछ करो उपाय मेरे भगवान

भक्त भक्त के बीच छिड़ गई है लड़ाई
धर्म के नाम पर जग में है आफत आई
सब के दाता है जगत में प्रभु श्रीराम
हम मानव है उपर वाले की संतान

राम कहो या कह लो रहीम
वजूद एक है एक है प्रतिविम्ब
रब ने सब के लिये यह संसार बनाया
फिर दुश्मनी का क्यूॅ रोग है लगाया

तोड़ दो सारे बंधन ओ नादान
जेहन में भर लो ज्ञान बन ज्ञानवान
हर इंसान अपना सा तब लागे
डर कर कोई पड़ोस से ना भागे

सब को देना प्रभु तुम ज्ञान
दूर करो हमरा मन का अज्ञान
हे परमात्मा सब हैं तेरे ही बन्दे
धर्म के नाम पर फिर बिचार क्यूॅ गन्दे

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088