तुम इन फूलों जैसी हो
अनिता ससुराल में कदम रखते ही अपने व्यवहार से परिवार के सभी सदस्यों के दिलों पर राज करने लगी थी। इसलिए उसके दाम्पत्य की नींव और भी मजबूत होने लगी।
अजय की आमदनी काफी अच्छी थी और परिवार में सिर्फ वही कमाऊ था तो परिवार की अपेक्षाएं उससे काफी थी। जिसे वह पूरी इमानदारी और निष्ठा से निभाया। अजय के इस नेक काम में उसकी पत्नी अनिता भी सहयोग की जिससे परिवार तथा रिश्तेदार काफी खुश थे। इसीलिए बदले में उन दोनों को भी अपने परिवार तथा रिश्तेदारों से काफी मान सम्मान मिलता था।
लेकिन परिस्थितियां सदैव एक समान नहीं रहतीं। अजय का बिजनेस फ्लाप होने लगा जिसके कारण वह परिवार तथा रिश्तेदारों को पहले जितना नहीं कर पाता था। धीरे-धीरे उसकी आर्थिक स्थिति का असर रिश्तों पर भी पड़ने लगा। जो रिश्तेदार उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते वह अब उनकी शिकायतें करने लगे और गलतफहमी इतनी बढ़ी कि एक – एक करके रिश्ते दूर होते चले गये।
आर्थिक तंगहाली में अजय ने अपनी जमीन बेचने का फैसला किया। जमीन बेचकर उसने आधे पैसों से कर्ज चुकता किया और आधे से डाउन पेमेंट करके बैंक से लोन लेकर एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया यह सोचकर कि घर का जितना किराया देंगे उतने में स्टालमेंट पे करेंगे ।
अजय और अनिता गृह प्रवेश में अपने रिश्तेदारों को भी आमंत्रित किये । लेकिन कुछ रिश्तेदार नाराज थे इसलिए उसके इस खुशी के मौके पर नहीं पहुंचे । नाराजगी इसलिये भी थी कि किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अजय वास्तव में तंगहाली में है। क्योंकि सभी को तो यही लग रहा था कि अजय झूठ बोल रहा है क्योंकि यदि तंगहाली होती तो वह फ्लैट कैसे ले सकता था ।
रिश्तेदारों के ऐसे व्यवहार अजय तो दुखी हुआ ही अनिता भी बहुत आहत हुई और मन ही मन उसने निर्णय लिया कि अब से वह भी उसके साथ जो जैसा व्यवहार करेगा उसके साथ वैसा ही बर्ताव करेगी । वह सोचती आखिर मैं ही क्यों अच्छी बनती फिरूँ? अब जब मैं भी उनकी खुशी में शामिल नहीं होऊंगी तो पता चलेगा।
समय बीता और महीने दिन बाद उसी रिश्तेदार के बेटे के शादी का आमन्त्रण आया जो कि उनके गृह प्रवेश में नहीं आये थे । बदले की आग में उबलती अनिता ने अजय से कहा “हम नहीं जायेंगे शादी में, आखिर एकतरफा रिश्तों को हम ही क्यों निभाते रहें ?”
कुछ हद तक अनिता भी बात तो सही ही कह रही थी इसीलिए अजय ने उस समय चुप रहना ही उचित समझा और पत्नी से चाय लाने के लिए कहकर अपने छत की छोटी सी बगिया में बैठ गया।
अनिता ट्रे में दो कप चाय और साथ में गर्मागर्म पकौड़े लेकर आई तो अजय ने उसकी तारीफ़ में एक शायरी पढ़ दी।
अनिता अपने पति को अच्छी तरह से समझती थी इसीलिए पति को मीठी झिड़की देते हुए कहा – “अच्छा – अच्छा बड़ी रोमैंटिक हो रहे हो, साफ – साफ कहो न जो कहना है। ”
अजय ने गमले में लगे हुए एक लाल गुलाब के फूल को उसके जूड़े में लगाते हुए कहा – “डार्लिंग इन गुलाबों को यदि मसल भी दिया जाये तो ये सुगन्ध फैलाना तो नहीं छोड़ते न? और देखो इन काँटों की फितरत को कि जिन्हें प्रयार से छुओ भी तो वे चुभेंगे ही। इसलिए हम अपना स्वभाव क्यों बदलें?
तुम इन फूलों जैसी हो।
अजय की बातें सुनकर अनिता का चेहरा गुलाब के फूलों की तरह ही खिल गया। और वह विवाह में जाने की तैयारी करने लगी।