अब तुम आए हो..?
जब प्रेम ही ना रहा शेष
जो दृग देखते हैं,
ऊपर ऊपर हरा भरा
पुष्पित पल्लवित मधु प्रदेश
अंतरचक्षु से देखो ,
तो पाओगे!!
निर्जन ,शुष्क ,परिवेश
अब तुम आए हो..?
जब प्रेम ही ना रहा शेष।
शब्द हो गए हैं
देखो श्रृंगारहीन
मंन की काया हो चुकी
जीर्ण जर्जर और मलिन
कुंठित ह्रदय मे भरा
क्षोभित भगनाआवेश
अब तुम आए हो.??
जब प्रेम ही ना रहा शेष।
अब ये रिक्त हिर्दय तुम्हें क्या दें!
यह व्यथित हृदय तुम्हें क्या दें!!
यह तो पीत पत्रों का
झरता हुआ वृक्ष हुआ
जहां उपवन सा कोलाहल था
वह बुद्ध सा समाधिस्थ हुआ।
जिसमें अब तुम
पा ना सकोगे पूर्ववत प्रवेश।
अब तुम आए हो..?
जब प्रेम ही ना रहा शेष।
देखो दीप्ति हृदय ढूंढो
जो तुमको दीप्तिमान करें,
जो अंतर कलेश धारे हो
उसका वह अवसान करें
अब तो हिर्दय ने धारा
तन मन वल्कल वेश
अब तुम आए हो..??
जब प्रेम ही ना रहा शेष।
— रेखा घनश्याम गौड़