कविता

एक दीप तेरे नाम का…

एक दीप तेरे नाम का जला रहा हूं ।
इस तरह  मैं दिवाली  मना रहा हूं ।।
फुर्सत मिले तो इधर भी आना !
दो चार के पास ही नहीं हमारे पास भी आना !!
उम्मीदों का एक दीप लिए,
आशाओं का दीप जला रहा हूं ।
कभी मेरे गरीब खाने में भी आओ स्वागत है !
तुम्हारी आगमन पर  बहुत-बहुत  स्वागत है !!
खुला आकाश की तरह खुले दिल से,
घर – आंगन दरो -दीवार सजा रहा हूं ।
नित्य कर्म कर भोजन करूं !
नित्य कुआं खोद जल पिऊं !!
शून्य जिंदगी की नगण्य कहानी,
आज मैं तुम्हें सुना रहा हूं …….।
तुम लक्ष्मी है धन की लक्ष्मी है !
सुना है बड़ी दानी है कल्याणी है !!
उम्र की दहलीज पर खड़ा होकर,
जिंदगी के तजुर्बे से  तुम्हें बुला रहा हूं ।
तेरे नाम से ही उजाला !
जीवन के तू रखवाला !!
खुला आकाश सितारों से जगमग,
खुले दिल से आगमन के लिए बुला रहा हूं ।
एक दीप तेरे नाम का जला रहा हूं ।
इस तरह  मैं दिवाली  मना रहा हूं

मनोज शाह 'मानस'

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