मेरी शब्दों की वैणी
यादों के भंवर में डूब कर मैं
अकसर मोतियन से शब्द लाती
बगिया शब्दों कि मेरी जहां से मैं
चुन कर शब्द , फूलों से सजाती।।
भाव , जज़्बात के धागों में पिरो
हर शब्द में जान भी भर जाती
गहरे राज़ , जख़्म , खुशियां ही
इन शब्दों में , जिंदगी के छुपाती।।
जो पढ़े दिल से शब्द वैणी के मेरी
उसे सुंदरता हकीकत नज़र आती
जुंबा से कुछ मैं बोल ना पाई कभी
वैणी ही जिंदगी का आईना दिखाती।।
ना बोल के भी , जो बोल दे शब्दों में
उन्हीं पहलुओं को अकसर गुनगुनाती।।
हालातें बयां ना कर पाई खुलके कभी
मेरी कलम लिख सबसे मुझे मिलाती।।
— वीना आडवाणी तन्वी