घर-घर में तिरंगा लहराया
मातृभूमि की वह कठिन घड़ी थी, गुलामी की बेडी जकड़ी पड़ी थी,
सह विषम कष्ट सर्वस्व बलिदान दिए, हंसते हंसते फांसी के तख्ते चढ गए,
राष्ट्र सपूतों ने आजादी का बिगुल बजाया, घर-घर में तिरंगा लहराया।
इतिहास तो बदला क्यों बदला भूगोल , देश मेरा बंट गया किसकी थी भूल,
भारत मां की धरती हुई लहूलुहान, लाखों ने गंवा दी अपनों की जान,
पी गरल दुसह यह अमृत पर्व है आया, घर-घर में तिरंगा लहराया ।
करते नहीं हम किसी से छल , 1971 हो या चाहे कारगिल,
जब पानी हो गया सिर से ऊपर , दुश्मन को मारा घर में घुसकर,
फिर पड़ोसी क्यों बिलबिलाया , घर-घर में तिरंगा लहराया ।
लुटते आए अब कितना लुटेंगे , नींद में कब तक सोए रहेंगे,
मतभेद आपसी मिटा के कब हम, समग्रचित्त एक सूत्र में बंधेगे ,
उठ जागो नया सवेरा आया , घर-घर में तिरंगा लहराया ।
समृद्ध सुसंस्कृत मानवतावादी, वसुधैव कुटुंबकम का पाठ पढ़ाती ,
भारतीय संस्कृति की ऐसी कामना, सर्वदा सर्वे भवंतु सुखिना,
अतिथि को हमने हृदय से अपनाया, घर घर में तिरंगा लहराया
— सुधा अग्रवाल