मुक्तक/दोहा

मुझे जानना है तो

मुझे जानना है तो मेरी कविता में तलाशो,
हज़ारों रंग में से निज पसंद रंग तलाशो।
इन्द्रधनुष में तो मात्र सात रंग ही होते हैं,
हर रंग के रंग मेरे किरदार में तलाशो।
राष्ट्र भक्ति का रंग सबसे गहरा है,
मानवता का रंग कहाँ कम ठहरा है।
इश्क़ प्यार मोहब्बत वफ़ा की बातें,
दर्द के रंग का परचम भी फहरा है।
सियासत के रंगों का तो कोई मेल नहीं है,
साइकिल-पंजा-झाड़ू के रंग खेल नहीं है।
तिरंगे में भगवा ऊपर हरा रंग नीचे देखा,
भाजपा का झंडा कमल भी बेमेल नहीं है।
कोई धनुष ताने तो कोई बाण लिये फिरता है,
जिस पर कुछ भी नहीं वह कमान लिए फिरता है।
तरक़्क़ी के युग में  कुछ लालटेन लिये डालते,
रंगों की दुनिया में कोई कोई बेरंग हुआ फिरता है।
रंग उतर गया कुछ चेहरों का यह नज़ारे देखकर,
ई डी- सी बी आई, आयकर के छापे जाँच देखकर।
कितनों का रंग सफ़ेद हो गया, काले से बदलकर,
किसी के गाल लाल हो गये, सफ़ेदी को देखकर।
— अ कीर्ति वर्द्धन