शिक्षक और छात्र
शिक्षक दिवस 5 सितंबर पर विशेष
जब भी शिक्षक दिवस आता है, हमें अपने शिक्षकों की याद आती है, हमारे छात्र-छात्राओं को भी हमारी याद अवश्य आती होगी. सिर्फ उन्हें ही क्यों, हमें भी अपने छात्र-छात्राओं की याद आती है.
हमारी बहुत-सी छात्राओं जयश्री पिप्पिल, ऋतु मल्लिक आदि पर पूरे-पूरे ब्लॉग्स बने हुए हैं, जो आप लोग समय-समय पर पढ़ते रहते हैं.
“हमारा विषय हिंदी ही रहा है और स्कूल अक्सर अंग्रेजी मीडियम के मिले हैं.”
“अंग्रेजी मीडियम का सीधा अर्थ है, अभिभावकों का हिंदी के प्रति उपेक्षित भाव!”
“मैडम हम जब भी हिंदी पढ़ने के लिए बैठते हैं, मम्मी किताब छीन लेती हैं.” छात्राओं का कहना होता था.
“हिंदी भी कोई पढ़ने का विषय है? इसमें तो वैसे ही पास हो जाओगी, कोई और विषय पढ़ो.” अक्सर छात्राएं कहतीं.
”इसलिए अक्सर हिंदी के कालांश में छात्राएं पढ़ने में तनिक भी रुचि नहीं दिखातीं थीं.” ऐसा माना जाता था.
हमें छात्र जीवन में या अध्यापन क्षेत्र में ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ.
ललिता द्रविड़ मैडम हिंदी पढ़ाने आतीं, हम सब किताबें खोले बैठे हिंदी पढ़ने के लिए तैयार होते थे.हम जब हिंदी पढ़ाने जाते, हमारे छात्र-छात्राएं किताबें खोले बैठे हिंदी पढ़ने के लिए तैयार होते थे.
“मैडम, आज पहले एक भजन या गीत सुनाइए.” रोज प्रार्थना-सभा में नए गीत-कविताएं और विशेष अवसरों पर विशेष भजन तो हम सुनाते ही थे, अतः छात्राओं को पता ही होता था, कि हम क्या-क्या जानते हैं.
“2-3 मिनट के लिए छात्रों की पसंद का सम्मान करने से बाकी के 27-28 मिनट छात्र मन लगाकर पढ़ते हैं, ऐसा हमारा मानना होता था, एक भजन या गीत सुनाकर मजे-मजे से उस दिन का पाठ पढ़ाया, छात्र भी खुश और हम भी.”
“आज हम आपको एक जादू दिखाते हैं.” हम पाठ शुरु करते.
जल, नीर, तोय, वारि, पय ये सब किसके पर्यायवाची शब्द हैं? स्वभावतः उत्तर होता पानी के.
जलद, नीरद, तोयद, वारिद, पयद ये सब बादल के पर्यायवाची शब्द बन गए. यानी पानी के पर्यायवाची में “द” प्रत्यय लगाने से बादल के पर्यायवाची शब्द बन जाते हैं.
जलधि, नीरधि, तोयधि, वारिधि, पयधि ये सब समुद्र के पर्यायवाची शब्द बन गए. यानी पानी के पर्यायवाची में “धि” प्रत्यय लगाने से बादल के पर्यायवाची शब्द बन जाते हैं.
जादू के नाम से छात्र सीखने-पढ़ने के लिए एकदम चुस्त दुरुस्त हो जाते हैं
इसी तरह कभी कहानी कभी चुटकुला सुनाकर हम पाठ शुरु करते और छात्र सीखने को तैयार मिलते. अगले दिन के लिए बता दिया जाता कि क्या पढ़ेंगे, तो छात्र उसके लिए तैयार मिलते.
कक्षा कार्य की कॉपियां उसी समय घूम-घूमकर देखी जातीं और गृह कार्य की कॉपियां बराबर नियम से चैक की जातीं. और त्रुटियां? त्रुटि को तो दूर से ही सलाम! कक्षा कार्य हो या गृह कार्य, त्रुटियां कतई स्वीकार नहीं होतीं.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का अनमोल कथन है-
“शिक्षक वह नहीं है, जो छात्र के दिमाग में जबरदस्ती तथ्यों को ठूंसे, वास्तविक शिक्षक वह है, जो छात्र को आने वाले कल के लिए तैयार करे.”
यही हमारा भी प्रयास रहा है. छात्रों की प्रतिभा को पहचानकर हमने बहुत-से छात्र-छात्राओं की प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया, ताकि भविष्य में उनको अटकन-भटकन का सामना न करना पड़े.
आज भी अनेक छात्र-छात्राएं हमारे संपर्क में हैं और अपने बच्चों और बच्चों के बच्चों के बारे में बतियाते और परामर्श लेते रहते हैं.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को उनके योगदान और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में हर साल 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक, दार्शनिक, राजनयिक और राजनेता थे. वह हमारे देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे. डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. डॉ. राधाकृष्णन को सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था.
शिक्षक व शिष्य की सफलता के लिए एक अद्भुत गुर-
“जब खराब दिन हों तो सारस की तरह समय पर टकटकी लगाकर रखो और जब अच्छे दिन आएं बाज की तरह झपट्टा मारो.”
हमारी तरफ से सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. शिक्षक सही राह दिखलाने के लिए प्रतिबद्ध रहें और छात्र सही राह पर चलने के लिए कटिबद्ध रहें.