पुस्तक समीक्षा – ‘आषाढ़ के बादल’
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का चौथा महीना आषाढ़, इस्वी कलेंडर के जून या जुलाई माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है क्यों कि इस समय भारत में काफ़ी वर्षा होती है। संयोगवश आषाढ़ माह में ही झारखंड की साहित्य धरा अकादमी द्वारा प्रकाशित आदरणीय डॉ. गुलाब चंद पटेलजी का काव्य संग्रह ‘आषाढ़ के बादल’ समीक्षा के आग्रह के साथ प्राप्त हुआ।
डॉ. गुलाब चंदजी गांधीनगर गुजरात के निवासी है और मुख्य रूप से सामाजिक कार्यकर्ता है। गांधीवादी विचारधारा के समर्थक होने के साथ-साथ गांधी पीस फाउंडेशन नेपाल से उन्होंने गांधियन फिलॉसफी में शोधकार्य कर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। जिस प्रकार गांधीजी ने वकालत में शिक्षण प्राप्त किया था, उसी प्रकार डॉ. गुलाब चंद जी ने भी कानून की पढ़ाई कर एल.एल.बी किया हुआ है।
मेरा परिचय आदरणीय डॉ. गुलाब चंद जी पटेल से गांधी जयंती के उपलक्ष्य में उनके द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी के दौरान हुआ। हालाँकि प्रत्यक्ष भेंट नहीं हुई है लेकिन बहुमुखी प्रतिभा के धनी आदरणीय गुलाबचंद जी से मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। साहित्य के प्रति उनकी समर्पण भावना विशेषकर हिन्दी के प्रति नि:संदेह प्रशंसनीय है।
प्रस्तुत काव्य संग्रह इंद्रधनुषी रंग लिए हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहूं तो आषाढ़ के बादल रूपी माला ९७ रंगीन मोतियों से सुसज्जित है। जहाँ धर्म, कर्म, महामारी, त्यौहार, परिवार, देश भक्ति, राजनीति, भाषा आदि सभी क्षेत्रों के दर्शन हो जाते हैं, ऐसा लगता है गुलाब चंद जी ने जीवन के प्रत्येक पक्ष को शब्दबद्ध कर दिया हो, कविताओं के साथ-साथ हम एक यात्रा पर चल पड़ते हैं जहाँ कभी कृष्ण कन्हैया रे, मैं ही मीरा राधा हू, रामचरित मानस, जय गणेशाय नम, भगवद गीता, छोड़ मे रणछोड़, रामांजलि, सीता राम, राम सेतु, क्रिसमस, गाय माता, मन चंगा तो कटौती में गंगा, केसरी नंदन हनुमान, रक्षा बंधन, डांग की होली आदि को पढ़कर हमारी धार्मिक और पारम्परिक चेतना जाग्रत होती है तो कभी पिताजी, नारी तू नारायणी, बचपन, ग्रांड सन पोता, बेटी क्यो नही चाहिए?, माँ तुम मेरी मुरत हो, माँ का प्यार दुलारा, बेटी बढ़ाओ आदि को पढ़ते हुए माता, पिता, बेटी, नारी और बचपन का महत्व समझ आ जाता है। गुलाबजी की कविताएं गागर में सागर भरते हुए सुंदर बिंदी हमारी हिन्दी कहते हुए हमारी हिंदी की इतनी विशद व्याख्या कर देते हैं कि उसके सामने सारे भाषाई तर्क फीके दिखाई देने लगते हैं। तुम बिन सुनी सुनी गलियां, हे प्रिये काश ऐसा भी हो आदि कविताओं में जीवन का श्रृंगार परिलक्षित होता है।
तो तिरंगा फहराएंगे,विश्व महा सागर,वीर भगत सिंह,तिरंगा देश की शान, सुहाना सरहदें, हमें चाहिए आजादी, पुलवामा आदि में देश की त्रासदी, शहादत और देश भक्ति के दर्शन होते है। रामधारी दिनकर सिंह “राष्ट्र कवि “, पुस्तक, विद्रोही कवि निराला, प्रेमचंद के फटे जूते आदि कविताएँ हमें हिंदी साहित्य से जोड़ देती है।
महामारी की भीषण तबाही को भी वे कातिल कोरोना कहते हुए अपने शब्दों से बड़ी गंभीरता से प्रस्तुत करते है। सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते नशा मुक्ति, नशा कर देता है सब नाश, मानव अधिकार, मजदूर, प्रवासी आदि सभी वर्गों को भी इस काव्य संग्रह में स्थान देतें है। कुल मिला कर यह कविता संग्रह शीर्षक कि दृष्टि से, विषयवस्तु कि दृष्टि से सम्पूर्णता लिए हुए है I समाजसेवी डॉ. गुलाब चंद जी बड़ी सादगी और सरलता से जीवन का प्रत्येक कोना झाकते हुए इस संग्रह को पूर्ण करते है, लेकिन उनकी विनम्रता भी देखिये कि वे अपने लेखन का श्रेय स्वयं नहीं लेते बल्कि कहते है राम ने ही कविता लिखाई।
— डॉ. उर्मिला पोरवाल-शिक्षाविद एवं साहित्यकार बैंगलोर