कविता

बदलाव

बदल दो उस धरती को
जो चमन को जार जार रूलाता है
बदल दो उस परती को
जो बंजर बन गुलशन को मुरझाता है
बदल दो उस प्रकृति को
जो मानव में दुश्मनी फैलाता    है
बदल दो उस आकृति को
जो झूठा आईना में अक्स दिखाता है
बदल दो उस नगमा को
जो गम की गीत सुनाता      है
बदल दो उस उपमा को
जो भूखे की बात जतलाता है
बदल दो उस तकदीर को
जो नीरस जीवन दिखलाता है
बदल दो उस तस्वीर को
जो मनहुसियत का माहौल बनाता है
बदल दो उस अल्फाज को
जो दिल को दर्द दे जाता है
बदल दो उस धोखेबाज को
जो साथ रहकर छ्ल कर जाता है
बदल दो उस संसार को
जो अपनापन नहीं सिखलाता है
बदल दो उस विचार को
जो ईष्या भाव मन में उपजाता है ।

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088