कविता

मानवता की चिता

जल रहा है मानवता की चिता
इस निर्दय जगत की शमशान में
खुश है मतलबी का नादान पिता
इस बेशर्म जगत के आसमान में

मिट रही है मर्यादा की तस्वीर
इस कुकर्मी बन के संसार में
लुप्त हुए संस्कार जगत से
बेपर्द की मनहूस परिवार में

आरजू पलती थी हर दिल के मन में
खुशियाली की फूल से घर सजाऊँगा
गुमनाम हो गई ख्वाब का ऑचल
बदनसीबी की बेबस  इस गॉव में

झूठी शान व शौकत से चमका
अभिमानी की अकड़ इस नाव में
डुबने का भी खौफ नहीं     है
इस गहरी पानी की   जाम में

हकीकत की धरातल खो गई
दुष्ट जनों का फल फूला चमन
धूर्तई की है चहुँ ओर शोर मचा
क्यूँ बेबस है जगत का   गगन

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088