शिक्षा ही प्रगति का आधार
विश्व साक्षरता दिवस प्रतिवर्ष 08 सितंबर को मनाया जाता है।पूरे विश्व में साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए,शिक्षा का प्रचार–प्रसार करने के लिए,शिक्षा के महत्व को जीवंत बनाए रखने के लिए यह कार्यक्रम बड़े जोर–शोर के साथ मनाया जाता है। बिना शिक्षा के कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता।शिक्षा ही देश की प्रगति का मूल आधार है।शिक्षा ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है।जिस राष्ट्र में शिक्षा और शिक्षक के प्रति जवाबदेही और उत्तरद्दायी ज्यादा होगी,उस राष्ट्र का विकास अवश्यंभावी है।मानव समाज में संस्कार,नैतिकता,एकता,भाईचारा तो आयेगी ही साथ ही साथ , समाज का आर्थिक विकास भी होगा।
इन्ही उपरोक्त सारे उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए यह विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है।वैसे इस दिशा में पहल करते हुए हमारे देश में बहुत अच्छे और सराहनीय कदम उठाए गए,और काफी कुछ प्रयास भी किया गए।इसका उदाहरण सन 2001–2002 में देखने को मिला जब तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी थे।इन्होंने प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौम बनाने के लिए एक अभियान चलाया जिसका नाम था “सर्व शिक्षा अभियान जो पूरी तरह सफल हुआ।जिसमे 06 से 14 साल के बच्चो को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की योजना रही।इस दिशा में और भी ज्यादा पहल करते हुए पूरे विश्व ने एक ऐसा दिवस मनाने का फैसला लिया जिसमे विश्व के सभी
वर्गों को शिक्षा प्रदान की जाय ।कोई भी व्यक्ति शिक्षा से वंचित न रहे। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु पहली बार यूनेस्को ने 07 सितंबर 1965 में विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।और इस प्रकार से पूरे विश्व में यह पावन दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
विश्व का पहला साक्षरता दिवस–
विश्व का पहला साक्षरता दिवस 08 सितंबर सन 1966 को मनाया गया।जिसको साक्षरता वर्ष भी घोषित किया गया।
साक्षरता का मानक–
सक्षरता का मानक क्या हो सकता है ?या साक्षरता की परिभाषा क्या हो सकती है ? तो इस संबंध में यह कहा जा सकता है की “साक्षरता” शब्द “साक्षर” से लिया गया।जिसका अर्थ होता है “पढ़ने और लिखने में सक्षम होना।” जिसमे वयस्क शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया गया।ताकि कोई भी वर्ग शिक्षा से वंचित न रहे।
भारत का साक्षरता दर–
विश्व साक्षरता की दृष्टि से भारत का साक्षरता दर 84 फीसदी कम है जो बहुत ही कम माना जा सकता है।सन 1947 में भारत की साक्षरता दर 18 प्रतिशत थी।जो बढ़कर 2011 में 74.4 प्रतिशत मानी गई है। जिस प्रकार केरल की साक्षरता दर शत–प्रतिशत मानी जाती है।ठीक उसी प्रकार पूरे भारत का आंकड़ा शत–प्रतिशत होगी तभी हम अपने देश को सम्पूर्ण “साक्षर भारत और सक्षम भारत” कह सकेंगे।
इसके अलावा साक्षरता के अर्थ को गहरे और गंभीर रूप में लिए जाने की आवश्यकता है। जैसा कि हम यह जानते हैं की साक्षर का मतलब “पढ़ना और लिखना”।इतना पर्याप्त नही है।यह पर्याप्त तभी मानी जाएगी जब वह सभी वर्ग के जन–समाज के लिए ज्ञान ,विज्ञान, संस्कार और राष्ट्रीयता के भाव भरे,और सभी का आर्थिक विकास हो,जो कल्याणकारी हो।
— अशोक पटेल “आशु”