कविता

सुध– बुध गंवा बैठी

तेरे अलकों का घुंघराला मुकुट देखकर,
मै सुध– बुध गंवा बैठी ।
अधरों पे तेरे ,मृदु मुस्कान
और
पुतलियों में तेरी लालिमा देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
माथे का केसर तिलक देखकर
तेरे मीणा में चंचलता देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरे रूह की छाया में मैं, ऐसी रूहानी हुई
कि सांसों की सरगम में,
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरी वाणी पर ऐसी, मंत्र– मुग्ध हुईं
कि
कृष्ण –गोपाला की छवि में तुम्हें देखती …!
मैं कुछ इस तरह, सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरे अलकों के घुंघराले मुकुट देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी।
— रेशमा त्रिपाठी 

रेशमा त्रिपाठी

नाम– रेशमा त्रिपाठी जिला –प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश शिक्षा–बीएड,बीटीसी,टीईटी, हिन्दी भाषा साहित्य से जेआरएफ। रूचि– गीत ,कहानी,लेख का कार्य प्रकाशित कविताएं– राष्ट्रीय मासिक पत्रिका पत्रकार सुमन,सृजन सरिता त्रैमासिक पत्रिका,हिन्द चक्र मासिक पत्रिका, युवा गौरव समाचार पत्र, युग प्रवर्तकसमाचार पत्र, पालीवाल समाचार पत्र, अवधदूत साप्ताहिक समाचार पत्र आदि में लगातार कविताएं प्रकाशित हो रही हैं ।