सुध– बुध गंवा बैठी
तेरे अलकों का घुंघराला मुकुट देखकर,
मै सुध– बुध गंवा बैठी ।
अधरों पे तेरे ,मृदु मुस्कान
और
पुतलियों में तेरी लालिमा देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
माथे का केसर तिलक देखकर
तेरे मीणा में चंचलता देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरे रूह की छाया में मैं, ऐसी रूहानी हुई
कि सांसों की सरगम में,
मैं सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरी वाणी पर ऐसी, मंत्र– मुग्ध हुईं
कि
कृष्ण –गोपाला की छवि में तुम्हें देखती …!
मैं कुछ इस तरह, सुध– बुध गंवा बैठी ।
तेरे अलकों के घुंघराले मुकुट देखकर
मैं सुध– बुध गंवा बैठी।
— रेशमा त्रिपाठी