कविता

कविता – भ्रष्टाचार करके परिवार को पढ़ाया

भ्रष्टाचार करके परिवार को पढ़ाया
टेबल के नीचे पैसे लेकर परिवार बढ़ाया
कितना भी समेट लो साहब
यह वक्त है बदलता जरूर है
सरकारी पद था उसकी यादें बहुत है
जिंदगी गुजर गई सबको खुश करने में
परिवार कहता है तुमने कुछ नहीं किया
सुनकर कहता हूं समय है बदलता जरूर है
अनुभव कहता है उस समय ठस्का था
पद पर बैठकर रुतबा मस्का था
भ्रष्टाचार में जीवन खोया पैसों का चस्का था
पद कारण भ्रष्टाचार का चस्का था
अब स्थिति जानवर से बदतर है
अब खामोशियां ही बेहतर है
पाप की कमाई का असर है
अब जिंदगी दुखदाई बसर है
खामोशियां ही बेहतर हैं
शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं
बात बात पर लोग चिढ़ते बहुत हैं
गुस्से में रिश्ते टूटते बहुत हैं
— किशन सनमूखदास भावानानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया