लघुकथा – योगदान
पिछले फ्राइडे को सांसद का आगमन हुआ। उनका खूब आवभगत हुआ। बड़े खुश होकर लौटे थे सांसद महोदय भी। अंचल के लोग उनके दर्शन से धन्य हुए। पब्लिक की माँग पर सांसद से गाँव और ब्लॉक को एक से बढ़कर एक सौगात मिली। लोगों को लगने लगा कि पूरे क्षेत्र का उद्धार हुआ इस बार। सांसद-आगमन की उपलब्धि पर सब अपने-अपने कर्तव्यों की तारीफ करते हुए नहीं अघा रहे थे।
“मैं जानता हूँ कि सासंद महोदय को अपने राहुद गाँव तक लाने में मुझे कितना पापड़ बेलना पड़ा है। बाप रे इतनी मेहनत !” अपनी फेवरपार्टी के गमछे से माथे को पोंछते हुए सरपंच राधेश्याम ने कहा।
“कई बार उनके घर जाकर हाथ-पाँव जोड़े; तब कहीं हुआ सांसद महोदय का आना।” एक नेता टाइप के शख्स का कहना था।
“यहाँ इतने सारे लोगों के लिए भोजन व्यवस्था करना कोई मामूली बात नहीं है। पूरा बदन दुख रहा है।” यह स्व-सहायता समूह की महिलाओं की आवाज थी।
तरह-तरह की बातें सुन कुछ युवकों का कहना हुआ- “इस गाँव से लगे तुमड़ीसुर में पुलिस चौकी बनना तय हुआ। इसमें हम युवाओं की अहम भूमिका है।”
तभी क्षेत्रीय विधायक, “राहुद जैसे पिछड़े गाँव का मैंने उद्धार कर दिया यहाँ कॉलेज खुलवाकर…” कहते हुए अपने पिछलग्गुओं के साथ कार की सामने वाली सीट पर बैठे।
अब सरकारी महकमे वालों की बारी आई। एस डी एम साहब का भी मन कुछ बोलने को हुआ- “यहाँ की पूरी व्यवस्था को मैंने सम्भाला है। सांसद साहब मेरी वजह से यहाँ तक पहुँचे। पूरे अंचल को मेरा शुक्रगुजार होना चाहिए।”
“अरे ! कोई कुछ भी; और कितना भी करे, कुछ नहीं होने वाला था हम सबके बगैर। हम डटे रहे हैं, तब सांसद जैसे नेता इस नानचुक गाँव में आये।” चार-पाँच कोतवाल और पुलिस वाले हँस-हँसकर बतिया रहे थे।
वहीं पर एक रिटायर्ड टीचर चौहान जी खड़े थे। भीड़ की बातें उनके कानों पर पड़ी। फिर नजर गयी अपने हमउम्र आमवृक्ष पर; जो हेलीपैड अरेंजमेंट के लिए जड़ सहित काट दिया गया था।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”