दोहा गीतिका
बोली, भाषा, लेखनी,जननी का वरदान।
हिंदी से ही हम बने, हिंदी मम पहचान।।
लिखना, पढ़ना, बोलना,हिंदी अपनी एक,
हिंदी गौरव देश की,हिंदी से ही मान।
आ से ज्ञ तक वर्ण का, वैज्ञानिक निर्माण,
सुघर कंठ से होठ तक,वर्णों का शुभ ज्ञान।
रंग – रंग होली सजी,फागुन का मधुमास,
सावन कजरी गा रहा,भादों से घन दान।
विजयादशमी की खुशी, दीवाली का पर्व,
हिंदी से ही सोहते, अपने पर्व महान।
अलग-अलग सम्बंध केअलग अलग ही नाम
अम्मा,चाची ,भाभियाँ, सबके विशद वितान।
उधर सभी हैं आंटियाँ,अंकल की भरमार,
दो ही शब्दों में छिपा, हर रिश्ते का भान।
माला बावन वर्ण की,पहन गले में मीत,
हिंदी भाषा आपकी, है साहित्यिक शान।
‘शुभम्’ नमन करता तुम्हें, हिंदी मेरी मात,
हिंदी कविता ने किया,शोभन स्वर्ण विहान।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’