आग चूल्हों से निकलकर लग रही बाज़ार में
आग चूल्हों से निकलकर लग रही बाज़ार में
क्या गज़ब है ये ख़बर है ही नही अख़बार में
बेईमानी की सियाही के असर में आ गयी
अब कलम है ही कहाँ अपने असल किरदार में
कुर्सियों ने भीड़ की झूठी गवाही मान ली
सच बहस करता रहा कानून की बेकार में
नफ़रतों की द्वेष की खुलती नही क्यूँ मंडियाँ
वोट भी हैं नोट भी जब धर्म के व्यापार में
राज़दाँ सबको हमारे राज़ बतलाता रहा
और हमको ये भरम था, कान हैं दीवार में
जा रहे हो, ठीक है जाओ, मगर इतना कहो
क्या यक़ींनन कुछ कमी थी प्यार मेरे प्यार में
सतीश बंसल
१६.०९.२०२२