कविता

खालिस

उसने जब से आंखें खोलीं
अपने आसपास
पानी में दूध को
दूध में पानी को
मिलता हुआ पाया
इसलिए / उसे
दूध / पानी
और
दूध जमा (+) पानी में
कोई / विशेष अंतर
नहीं नज़र आया
उसने / दोनों को
एक दूसरे का पूरक ही पाया
अब / जब कि
उत्सव हुआ
उसकी / षष्टी-पूर्त्ति का
उसे / आभास हुआ
दूध में पानी मिलाने की
अपनी / सहज त्रुटि का
शीघ्र ही / उसने
अपनी
भूल सुधार ली
दूध में से
पानी की मात्रा
बिलकुल ही निकाल दी
अचानक
उसके ग्राहकों ने
शिकायत की
“अरे भैया,
तुझे क्या हुआ!
अब तक तो
इतना अच्छा
दूध देता था
अब कैसा दूध लाता है!
ज़ायका-तो-ज़ायका
हाज़मा भी बिगड़ जाता है.”
अब वह है
बेहद परेशान
खालिस दूध दे
या कि
बने फिर से बेईमान!
आप ही बता दें
अगर समझ में आए
कोई हल साहिबान.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244