विनय
तन खूबसूरत हो या ना हो
मन को खूबसूरत कर दो
पाकेट में धन हो या ना हो
दिल को दौलतमंद कर दो
ईष्या द्वेष मन में ना उपजे
मित्र भाव से जग भर दो
दुश्मन पड़ोस में नजर ना आये
दोस्ती से चमन भर दो
अज्ञानता को दर किनार कर के
ज्ञान से मन की झोली भर दो
मूरख गले कभी ना लग पाये
सारा विश्व विद्वजन कर दो
रेगिस्तान रहे या ना रहे
सारी धरा हरा भरा कर दो
जीवन में पतझड़ ना दिखलाये
बसंत से जीवन भर दो
अन्याय चौखट पे दस्तक ना दे पाये
न्याय की दरवाजा आम कर दो
अन्यायी जग में ना दिखलाये
ऐसी तुम गुलशन कर दो
जग में कोई भूखा ना सो पाये
सब जन को रोटी की जुगत कर दो
जन्मदाता बुढ़ापा पे ने रोये
श्रवण कुमार से कोख भर दो
कोई प्यासा दर से ना लौट पाये
ठंडे जल से मटका भर दो
संतोष की फसल हर दिल में उपजे
लालच को तन मन से हर लो
— उदय किशोर साह