गज़ल
इक तो अब हो गई पुरानी भी,
हमको आती नहीं सुनानी भी,
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तुम अपने गम से भी नहीं खाली,
है अधूरी मेरी कहानी भी,
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आशिकी मर्ज़ लाइलाज भी है,
और पैगाम-ए-ज़िंदगानी भी,
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थोड़ा तूने भरोसा तोड़ दिया,
थोड़ी दिल को थी बदगुमानी भी,
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कभी सैलाब तो कभी शोले,
आँख में आग भी है पानी भी,
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कुछ तो गलतियाँ थीं अपनी और,
कहर कुछ टूटा आसमानी भी,
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वो ना आए खत लिखे कितने,
पैगाम अलग दिए ज़ुबानी भी,
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हमने दामन में भर लिए अपने,
तेरे सितम भी मेहरबानी भी,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।