गीत/नवगीत

हसरतों की शामें जवां हो गईं

हसरतों की शामें जवां हो गईं,
शायद कोई हसरत रवां हो गई!

मौजें तरंगित थीं होने लगीं,
प्रीति हिलोरें-सी लेने लगी,
तनहा थी मैं कारवां हो गई-

हवा ने छेड़े रंगीं तराने,
बनने लगे अब हसीं फसाने,
मुखरित थी मैं बेजुबां हो गई-

तमन्ना नहीं थी चांद-तारे पाने की,
हसरत नहीं थी नया सूरज उगाने की,
छोटी-सी उम्मीद मेहमां हो गई-

पंख पसारे थे कब हसरतों ने
पता ना चला बेवजह मुश्किलों में
कोई तो घड़ी मेहरबां हो गई-

शायद कोई हसरत रवां हो गई!
हसरतों की शामें जवां हो गईं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244