हसरतों की शामें जवां हो गईं
हसरतों की शामें जवां हो गईं,
शायद कोई हसरत रवां हो गई!
मौजें तरंगित थीं होने लगीं,
प्रीति हिलोरें-सी लेने लगी,
तनहा थी मैं कारवां हो गई-
हवा ने छेड़े रंगीं तराने,
बनने लगे अब हसीं फसाने,
मुखरित थी मैं बेजुबां हो गई-
तमन्ना नहीं थी चांद-तारे पाने की,
हसरत नहीं थी नया सूरज उगाने की,
छोटी-सी उम्मीद मेहमां हो गई-
पंख पसारे थे कब हसरतों ने
पता ना चला बेवजह मुश्किलों में
कोई तो घड़ी मेहरबां हो गई-
शायद कोई हसरत रवां हो गई!
हसरतों की शामें जवां हो गईं.