गजोधर भैया! तुम लौट तो आओगे न
ऐसा भी क्या था
कि आप तो सबको हंसाते गुदगुदाते
लोटपोट करते करते खुद मौन हो गए,
जैसे हमारी परीक्षा लेने के लिए
इतने दिनों तक मौन होकर
बिस्तर पर एकदम खामोश हो जम से गये।
माना हमारी कोई बात तुम्हें चुभ गई
या हमारे व्यवहार से तुम्हारी आत्मा घायल हो गई।
मानता हूं कुछ ऐसा ही हुआ होगा
तो इसमें कौन सा पहाड़ गिर गया होगा,
जो अपनी कामेडी और मिमिक्री से
रोतों की भी हंसाते थे,
ठहाके लगाने को मजबूर कर,
लोटपोट कर पेट पकड़ कर
हँसने को मजबूर कर देते थे,
कुछ पलों के लिए ही सही
हर किसी के सारे दुःख दर्द,
चिंता, पीड़ा से मुक्त कर देते रहे।
फिर अचानक ऐसा क्या सूझा
कि उन्हें ही रोने को मजबूर कर दिया
एक एक पल वापसी की प्रतीक्षा में थे हम
मगर आप तो बड़े बेमुरव्वत निकले
हमारी उम्मीदों पर बिजली गिराकर चलते बने।
कितने लोग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं
एकबार ये भी नहीं सोचा
और चुपचाप बहुत दूर निकल गये,
हम तो पर्दा उठने और
गजोधर भैया का इतंजार ही करते रह गये।
और आप तो गजब निकले गजोधर भैया
पर्दा, पंडाल ही नहीं स्टेज सहित
सारे तामझाम अपने साथ लेकर चले गये,
ऐसे जैसे हमारे बीच रिश्ते ही नहीं रहे।
चलो कोई बात नहीं
आना जाना तो लगा ही रहता है,
पर भला रुठकर कोई यूं मुंह मोड़ जाता है?
हमें तुमसे न शिकवा,न शिकायत है
न कोई अदावत, न बगावत है
बस! ईमानदारी से हमें इतना भर बता दो
गजोधर भैया! तुम लौट तो आओगे न?
एक बार फिर से हम सबको पहले की तरह
हंसा हंसा कर लोटपोट करोगे न?
हमारी पीड़ा पर अपने ठहाकों का
मरहम तो लगाओगे न,
हमारे बीच फिर से लौट तो आओगे न?