जब गुजर गया सोने सा वक़्त
उसने कहा तुम कर लो जो करना चाहती हो
कब मना किया तुमको
जो चाहो कर सकती हो
सहमी आँखों में वो सारे पल गुजर गए
यकायक चलचित्र की तरह वो दृश्य गुजर गए
वो हर पल की बंदिशें
वो हर पल जैसे ठगा जाना
आने वाले कल की अभिलाषा में
आज की इच्छा को मारा जाना
बस कुछ समय की ही तो बात है
कल देखना सब अच्छा होगा
आने वाला कल आज से कहीं बेहतर होगा
मत सोचो देखो अपने बारे में
बच्चों का भी तो भविष्य देखना होगा
क्या कभी सोचा तुमने
कितना नीर बहा होगा इन सालों में
कितनी तमन्नाओं को मारकर
कुछ आस जगाई होगी जीवन में
वक़्त होता है हर बात का
अब कहाँ सुहाते हैं वो जेवर कपड़े
अब कहाँ सपने सजने सँवरने के
अब तो हँसना भी जैसे सपना लगता है
मुस्कराने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है
वक़्त कहाँ इजाजत देता है
वक़्त कब वो दिन लौटा पाता है
वक़्त कैसे वापिस आ सकता है
जो जीवन जिया झूठी उम्मीदों में
अब वो उम्मीदें भी टूटती नजर आती हैं
खुशियाँ मोहताज नहीं होती
जेवर ,कपड़े और गाड़ियों की
बस दो मीठे बोल अपनों के
दर्द में भी जैसे मीठी गोली होती हैं
एक वक्त के बाद मिला
अमृत भी मायने खो देता है
क्या ये सच किसी को नजर आता है ?
— वर्षा वार्ष्णेय