इतिहास

पूर्वजों की धरोहर सम्भालो, इसे उन्होंने अपने रक्त से सींचा है!

हे चक्रवर्ती सम्राटो, हजारों वर्षों तक विशाल भारत पर राज करने वाले, सनातन धर्म रक्षकों, हजारों मंदिर निर्माताओं, राष्ट्र रक्षकों (चंद्रगुप्त, अशोक, धर्मपाल, मल्हार, अहिल्याबाई, भीमाबाई) की भ्रमित और कुंठित संताने आज अपना भविष्य 75-80 वर्ष पुराने संविधान में खोज रही हैं अपने पूर्वजों की बनाई धरोहर (कई हजारों मंदिरों, धर्मशालों शहरों, कुओ, बावड़ियों, विश्व विद्यालयों) को छोड़ने की बात कर रहे हैं। एक सज्जन कह रहे थे मंदिर नहीं पुस्तकालय यानि पहले उन 12772 मंदिरों से किनारा करो जिसको हमारे पूर्वजों ने अपने शौर्य और धन से बनाया है।
अपने पूर्वजों की दी गई धरोहरों को छोड़ दो और पुस्तकालय की ओर चले जाओ जहाँ मानसिक विकृत लोगों, सनातन संस्कृति के विरोधियों द्वारा लिखी हजारों पुस्तकें रखी हैं उन्हें पढ़ो जिनमें तुम्हें नीच, पिछड़ा आदि लिखा और उनमें अपना भविष्य खोजो।
क्या विशाल वट वृक्ष से टूटा पत्ता हरा भरा रह सकता है? क्या जड़ से टूटकर वृक्ष जीवित रह सकता है? फिर क्यों तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों की दी विरासत से अलग करने का प्रयास किया जा रहा है? जो ये प्रयास कर रहे हैं या तो वो शत्रुपक्षी हैं अथवा रावण, दुर्योधन रूपी कुलघाती। थोड़ा कहना अधिक समझना।
जिस संविधान की बात आज हर ओर हो रही है वो संविधान तुम्हारे पूर्वजों द्वारा बनाये कई हजार मंदिरों, महलों, विशाल भवनों पर संविधान अपना कब्जा करके बैठा है। इस देश में अब इस संविधान की आयु मात्र 25-30 वर्ष की ही शेष है। जैसे -जैसे इस्लामिक आबादी बढ़ती जाएगी, इसे कचरे के डिब्बे में डाला जायेगा और हर ओर इस्लामिक शरिया लागू किया जायेगा।
संविधान वो पिंजरा है जिसमें केवल हिन्दूओं को फसाया जाता रहा है और उनका शोषण किया जाता है रहा है। ईसाई और इस्लाम बहुल क्षेत्रों में ये पिंजरा कुछ कार्य नहीं करता।
इस पिंजरे के टूटने से बाकि समाज तो सुखी सम्पन्न हो जायेंगे बस जनता की कमाई से मलाई खा रहे लुटेरे नेता, अधिकारी खत्म हो जायेंगे। इसलिए वो इस पिंजरे तो तोड़ने नहीं देते। क्योंकि इस पिंजरे में हिन्दुओं को फसाकर ही तो उन्होंने इस राष्ट्र की संस्कृति को, शिक्षा को, भूमि को, धन को, छीना है, तोड़ा है और जो समाज इस राष्ट्र की सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा रक्षक था उसे ही उससे बेदखल किया है।
ईसाई 100 से अधिक देश बना कर बैठे हैं, मुस्लिम 56 देश बनाकर बैठे हैं।
क्योंकि वो किसी संविधान से नहीं बल्कि अपने पूर्वजों की दी विरासत को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
हमारा पतन इसलिए हो रहा है क्योंकि हम अपने पूर्वजों और संस्कृति को भुला कर आगे बढ़ने के प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार डाल से टूटा पत्ता और जड़ से टूटा वृक्ष कभी फल फूल नहीं सकता उसकी प्रकार जड़ से टूटा समाज कभी अपना गौरव वापस नहीं पा सकता।
जिन्हें दुनिया के सामने आज ये सिद्ध करना है कि उनके पूर्वज चक्रवती सम्राट रहे और हमेशा अपने तन-मन-धन से सनातन और राष्ट्र कि रक्षा की है वो आज स्वयं को शूद्र सिद्ध करने में लगे हैं।
ज़ब ईसाईयत और इस्लाम विश्व भर में फैलने के स्वप्न देख रहा है, विश्व को जीतने के स्वप्न देख रहा है और वो तेजी से विजय की ओर बढ़ रहा है। फिर सबसे विशाल सनातन क्यों सिमटने के लिए तत्पर है। क्या सनातन में अब अपनी रक्षा का सामर्थ्य नहीं रहा? क्या विश्वभर को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाला और अपनी शक्ति का लौहा मनवाने वाला सनातन, अब अपनी सभ्यता और सामर्थ्य को भूल गया। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारा पतन निश्चित है। निश्चित है हम शीघ्र ही इस धरा से सिमट जायेंगे।
आपका अपना
— धर्मवीर पाल

धर्मवीर सिंह पाल

फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के नियमित सदस्य, हिन्दी उपन्यास "आतंक के विरुद्ध युद्ध" के लेखक, Touching Star Films दिल्ली में लेखक और गीतकार के रूप में कार्यरत,