भगत सिंह और जनमुक्ति
आज हमारा मुल्क आजाद है किन्तु जिन उद्देश्यों को लेकर शहीदेआजम भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने मौत को गले लगाया था क्या हम उन उद्देश्यों को प्राप्त कर सके हैं? यह एक काफी गम्भीर और विचारणीय सवाल है। हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि गुलामी की दाग सबसे कलंकित और गहरी दाग होता है। गुलाम का अर्थ ही है किसी दूसरे के अधीन रहकर अपने आकांक्षाओं को दबाए रखना। और यही चल रहा था हमारे देश में, अंग्रेज हमें गुलाम बनाये हुए थे, भारत पर ब्रिटिश हुकूमत चल रहा था जिसका मात्र एक ही मकसद था भारत को लूटना और भारतीयों का शोषण करना। आज जब हम आजाद भारत में हैं क्या हम यह कह सकते हैं कि भारत में किसी भारतीय का शोषण नहीं होता है, किसी भारतीय पर कोई जुल्म नहीं हो रहा है? शोषण हो रहा है,अत्याचार जारी है,आस्था के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है, वैज्ञानिक विचारों को कुतर्कों के सहारे दवाने की पूरी कोशिश की जा रही है। पूंजीपति तो शोषक होता ही है, साथ ही साथ लोकतंत्र की मुखौटा ओढ़े हुए यह पूँजीवादी राजसत्ता यह सारा खेल खेल रही है।पत्रकारिता जिसका उद्देश्य होना चाहिए यथार्थ को रखना, वैज्ञानिक विचारों को बढ़ावा देना, भारत की साझी संस्कृति को फलने-फूलने में मदद करना उसके जगह आज यह अंधविश्वास, ज्योतिष, पूजापाठ, धर्मान्धता को पड़ोस रही है। शोषण की मशीन पूँजीवादी तंत्र को आज भारत की पत्रकारिता खुलकर बढ़ावा दे रही है।सवाल उठता है ऐसे में शहीदों के सपनों का क्या होगा? क्या वह एक मात्र स्वप्न ही रह जायेगा?
आज यदि भगत सिंह होते तो क्या वे ये सब देख चुप बैठे रहते? विल्कुल नहीं। भगत सिंह ने कहा था, “जबतक शोषण और जुल्म होता रहेगा मेरा संघर्ष जारी रहेगा।” आज भगत सिंह को बहुत सारे लोग जानते हैं, उनपर लिखते हैं, उनकी बहादुरी का वर्णन करते हैं, और उनपर चर्चा भी करते हैं। यह देखकर और सुनकर हमें काफी खुशी होती है।लेकिन इतना ही से हमारा कर्तव्य पूरा नहीं होता। हमें भगत सिंह के बताए मार्ग पर चलना होगा। इंकलाब की केवल नारा नहीं इंकलाब को भी समझना होगा। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम भगत सिंह की चिंतन को समझें और उसे गाँव-शहर में फैलायें। केवल भगत सिंह की जन्म और मृत्यु की तिथि बताकर हम भगत सिंह के विचारों तक नहीं पहुँच सकते।भगत सिंह ने जिस अन्याय को खत्म करना चाहा था वह था शोषण, जिसके लिए आज पूँजीवाद का अन्त एवं वैज्ञानिक समाजवाद की स्थापना आवश्यक है। हालाँकि यह कोई आसान काम नहीं है, किन्तु असम्भव भी नहीं है।भगत सिंह कार्ल मार्क्स के विचारों के करीब आ चुके थे,खुद को एवं अपनी संगठन को साम्यवादी बनाने के प्रक्रिया में लग चुके थे। आज कोई व्यक्ति मार्क्सवादी कहे तो उसकी हँसी उड़ाई जाती है और हँसी उड़ाने वाले को खुद पता नहीं होता कि उनकी यह हँसी उनके लिए एक आत्मघाती कदम है। भगत सिंह कोई मूर्ख नहीं थे बल्कि उभरता हुआ एक महान चिंतक थे। उन्होंने मार्क्सवाद की ओर अपनी झुकाव इसलिये दर्शाया था क्योंकि वह समझ चुके थे कि मात्र यही एक दर्शन है जो विज्ञान पर आधारित है, दुनिया को बदल सकता है और शोषण-मुक्त , वर्ग-विहीन साम्यवादी व्यवस्था की सथापना कर सकता है।
भगत सिंह हमेशा आम लोगों की चिन्ता करते थे। उनके चिंतन के केन्द्र में किसान और मजदूर होते थे। आज हिंदुस्तान में जो किसानों और मजदूरों की बदहाल स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। ऐसा नहीं है कि किसान और मजदूर मेहनत नहीं करते हैं। असल बात तो यह है कि मेहनत तो ये करते हैं किंतु मुनाफा कोई और ही (शोषक वर्ग) उठाता है। इन बेचारों को अपने दीनता के हाल पर जीने के लिए छोड़ दिया जाता है, बस किसी तरह से जिन्दा रह सके इतना ही मजदूरी इन्हें दिया जाता है। आज भगत सिंह होते तो निश्चित ही इन किसान, मजदूरों की मुक्ति हेतु साम्यवादी क्रान्ति का बिगुल फूँकते, जन-जन को जगाते और जनमुक्ति की उपाय बताते हुए क्रान्ति के पथ पर लाते।
आज हमारे बीच भगत सिंह नहीं हैं किन्तु उनके विचार जिन्दा है जिसे अपनाकर हम भगत सिंह के सपनों का साम्यवादी भारत बना सकते हैं। याद रहे साम्यवाद की स्थापना के लिए क्रान्ति आवश्यक शर्त है।हम यदि दिल से भगत सिंह को याद कर रहे हैं तो हमें उनके विचारों पर चलने का संकल्प लेना होगा।भारत ही क्या पूरी दुनिया से हमें शोषण और जुल्म का अन्त करना होगा। तो आयें हमलोग आज से ही जनमुक्ति के लिए मुक्तिपथ पर चलना शुरू कर दें। यह संकल्प ही आज भगत सिंह के प्रति हमारी सच्ची और सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।
— अमरेन्द्र