कविता

अभी मुर्दा होता हूं

आज रात जब
मैं गहरी नींद में सोया था,
जैसे शरीर और प्राण में
तलाक हो चुका था।
ये कोई नयी बात तो थी नहीं,
सोना और मरना एक जैसा होता है
ये बात आज मुझे समझ मेंं आया
जब रात यमराज ने मुझे
झिंझोड़ कर कविता सुनाने के लिए
मुझे बड़े उत्साह से जगाया,
मैंने उनींदी में ही उनका हाथ झटक दिया
सुबह सुना देना कहकर फिर सो गया।
पर यमराज भी बड़ा जिद्दी ठहरा
मेरे कमरे मेंं रखी किताबों को उठाया
मेरे बिस्तर पर पटक दिया
फिर मुझे हिलाकर जगाया
बड़े प्यार से कहा
बच्चू तो सोता रह,
मगर मेरी कविता सुनता रह।
मैं जल भुन गया
सोते मेंं भला मैं कविता तो क्या
कुछ भी कैसे सुन सकता हूँ?
सुनने के लिए जगना पड़ता है।
मुझे क्या मूर्ख समझता है?
यमराज ने दार्शनिक अंदाज मेंं बताया
मेरी कविता सुनने के लिए तो मरना ही पड़ता है।
तू चुपचाप रह
बस ! ये समझ तू मुर्दा ही है,
जिंदा होने के ख्वाब में है।
एहसान मान मैं खुद चलकर
तूझे ले जाने नहीं सिर्फ़ कविता सुनाने आया हूँ।
तुझ पर बड़ी शोध करके आया हूँ
तू बहुत अच्छा लिखता है
सबको बड़े प्यार से सुनता
सबको आगे बढ़ने की राह बताता है।
बस! यही सोचकर मैं तेरे पास आया हूँ
देख तो सही कितने प्यार से
अपनी आदत के एकदम विपरीत
बड़ी अनुनय विनय कर रहा हूँ।
प्लीज! थोड़ी देर के लिए मर जा
मेरी कविता सुन मुझे भी राह दिखा दो
कुछ काव्यपाठ, कवि गोष्ठी मेरा भी करवा दो,
दस बीस छोटी बड़ी पत्र पत्रिकाओं मेंं
मेरी भी रचनाएं छपवा दो,
सौ पचास ई सम्मान पत्र भी दिलवा दो,
कुछ मंचों पर पहुँचा दो।
मैं यमराज! तुम्हारा एहसान मानूंगा
हर जगह तुम्हें अपना गुरु बताऊंगा,
हर समय तुम्हारे गुण गाऊँगा
तुम्हारा शिष्य बन धन्य हो जाऊँगा।
मैंने पल्ला झाड़ने की नियत से कहा
मगर मैं इतना काबिल तो नहीं हूँ
कि तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँ
तुमसे अपना गुणगान कराऊँ,
मैं सो भला कैसे सकता हूँ
तुम्हारे डर से पसीने पसीने हो रहा हूँ।
यमराज कातर स्वर मेंं बोला
गुरुदेव! मुझे भरमाओ न
मैं सब जानकारी लेकर आया हूँ
तुम्हारे शिष्यों से तुम्हारी कुंडली साथ लाया हूँ।
गुरु तो बनने को बहुतेरे तैयार हैं
पर मुर्दा होने को न कोई तैयार है।
सबने सिर्फ आपका नाम सुझाया है
नवोदित कलमकारों का आपको मसीहा, भीष्म पितामह बताया है,
सबने सिर्फ और सिर्फ आपका पता बताया है।
प्रभु! मेरा अनुनय विनय स्वीकार करो
थोड़ी देर के लिए मुर्दा हो जाओ,
विश्वास करो मैं यमराज हूँ
आपके प्राण नहीं ले जाऊँगा,
कविता सुनाकर आपको सही सलामत छोड़कर जाऊँगा।
बस! आप मुझे भी मार्गदर्शन दे दो
मेरी कविता सुन अपना वरदहस्त
मेरे सिर पर रख दो,
जो कमियां हो सुधार कर दो
मुझे भी साहित्यिक दुनिया में
औरों की तरह स्थापित होने का
ज्यादा नहीं दस बीस सूत्र ही दे दो।
विश्वास करो जो पहले नहीं हुआ
वह.अब हो जायेगा,
आपका नाम इस दुनिया में ही नहीं
हमारी दुनिया मेंं भी हो जायेगा।
ये दुनिया तो स्वार्थी है
आगे बढ़ते ही आपको धकिया देगी,
हमारी दुनिया मेंं ये चोंचलेबाजी नहीं होगी।
इसमें मेरा भी स्वार्थ है गुरुवर
इस दुनिया में आते जाते रहने से
थोड़े बहुत मिले संस्कारों का
शायद असर है गुरुवर,
जब सारे ब्रहांड को पता चलेगा
कि आप मेरे गुरु हैं
तो मेरा भी सम्मान बढ़ जायेगा गुरुवर।
कहकर यमराज ने हाथ जोड़ शीष झुका लिया
अब तक तो मैं चुपचाप सुनता रहा
यमराज के जाने की राह देखता रहा,
मगर अब मुझे भी आनंद आने लगा
यमराज मेरा शिष्य होगा
यह सोच मन गुदगुदाने लगा।
मैंने यमराज को संबोधित कर कहा
तुम्हारी उन्नति ही नहीं खुशी के लिए
मैं तुम्हारा गुरु बनने को तैयार हूँ,
तुम मेरे सबसे योग्य शिष्य बनोगे
ये आशीर्वाद देता हूँ,
वादे से मुकर न जाऊँ इसलिए
मुर्दा होकर तुम्हारी कविता सुनने का
अखिल ब्रह्मांड को साक्षी मानकर वचन देता हूँ,
तुम्हें अपना सबसे प्रिय शिष्य घोषित करता हूँ,
तुम्हारी कविता सुनने के लिए
अभी मरकर मुर्दा होता हूँ,
साथ ही तुम्हें कैसे आगे बढ़ा सकता हूँ
इसका भी कुछ जुगाड़ करता हूँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921