कविता

दिल का दर्द

दिल का दर्द भी अपना ही है
दर्द देने वाला भी  अपना ही है
किससे करूँ शिकायत उनकी
फरियाद सुनने वाला भी अपना ही है
आत्मसम्मान को जब लगती है चोट
घायल हो रोता है अन्दर की जिगर
जख्म से जब उठती है मन की टीस
रिस रिस कर बहने लगाता है रक्त
ना कोई मरहम ना कोई है यहाँ वैद्य
कैसे सहे ये दर्द गम की नगमा का
शिकवा कोई ना सुनेगा सहरा में
लुट गया चैन सुकुन का दिया सदमा
अय मायुस दिल ना हो बैचेन यहाँ
कोई तो राह खुद दिख ही जायेगा
जिसने भी ये दर्द दी है जिगर को
वो ही दवा भी देकर जायेगा
कदम बहक रहा है बेखुदी में
कोई थाम ले हाथ मेरा
दिल पागल है उनके बिना
कोई पहुँचा जा पयाम मेरा
जब खो देता हूँ होश अपना
जगत का नजारा बदल जाता है
इस बेदर्द जमाने की शैय पर
हर पल फिसल जाता है पथ पर

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088