प्रेम
आओ रिश्ता बोयें, प्रेम की मिठास के बीज डाल कर विश्वास से रिश्तो को सींचें
यह प्रकृति का नियम है, हर पौधे को हवा पानी
और सूरज के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
उसी तरह…
हर रिश्ते को सच्ची भावना (दिखावटी नहीं), भागीदारी, सच्चे समर्थन और उस अपनेपन की आवश्यकता होती है
जिसमें वो रिश्ता सदैव हरा- भरा रह सके ।
सकंल्प लें विश्वास की डोर से रिश्तों को स्नेह से संजो लें।
दोस्तों को परिवार रूपी सदस्य को माला की भाँति पिरो लो।
त्याग की नौका में बैठो, खुशियाँ आपार मिलेंगी।
निस्वार्थ बगीचे में रिश्तों की मिठास होगी।
मनमुटाव की खतपतवार को उखाड़ फेंको।
दिल की बगीया हरी -भरी मिलेगी ।
आओ प्रेम की मिठास से रिश्ता बीजें।
— डॉ. आकांक्षा रूपा चचरा