कविता

लंका दहन

समुद्र लांघ महावीर पहुँचे श्रीलंका
बजा दी अपनी वीरता की  डंका
अशोक वाटिका में उदास वैदेही
हनुमान ने अपनी परिचय पहुँचाई
कहा मैं दूत हूँ प्रभु श्रीराम   की
दिया मुद्रिका प्रभु भगवान    की
मुद्रिका देख सीता  जी हुई शांत
कहा ले चलो यहाँ से     हनुमान
हनुमान ने माता को तब समझाया
श्रीराम करेगें पापीयों का  सफाया
भूख से हनुमान अति विकल थे
आज्ञा माता का पाकर तृप्त हुए थे
चले उजाड़ने अशोक   वाटिका
तहश नहश किया गर्व राक्षस का
मार गिराये अनगिनत   सिपाही
देख देख मुस्कुराई     वैदेही
लंकापति ने जब यह संदेशा पाया
बाँध हनुमान को दरबार में मंगाया
पूछा कौन हो तुम रे      बानर
मौत का दंड पायेगा तूँ   कायर
श्रीराम का दूत हूँ मैं रावण
अंहकार टूट जायेगा दशानन
तुँने चोरी से सीता हर लाया
जीवन में तुँ पाप कमाया
लौटा दो माता सीता को
मुक्ति पा लो श्रीराम मीता से
पर अभिमानी लंकेश ना माना
हत्या कर देने की आदेश दिलाना
विभिषण ने राज नीति समझाई
दूत ना मारने की नीति बतलाई
पूँछ में आग लगाने का दी आदेशा
अमल किया सिपाही सुन लंकेशा
बाँध पट्टचर पूँछ में आग लगवाई
तब महाबीर अट्टालिका सब जलाई
त्राहि त्राहि मच गये श्रीलंका
जल गई महल बने जो थे कनक का
पुनः हनुमान सागर तट आये
अपनी पूँछ की आग बुझाई
गये अशोक वाटिका  महावीरा
प्रमाण जानकी की लिया सवेरा
वापस लौटे लंका से हनुमान
जहाँ देख रहे थे राह श्रीराम
कह लंका की सब कथा सुनाई
गले लगाये प्रभु सुन दुःखदाई
कहा कूच करो चलो सब लंका
ढा देना है अभिमान का मन का

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088