आम आदमी की नरक यात्रा
एक आम आदमी था जीवन भर मजबूरी और मजदूरी में जीने वाला ,उसके लिए सुख और दुख दोनों ही समान थे, वह कम दुख को ही सुख समझता ,क्योंकि वह आम आदमी था, उसने जीवन के सुख-दुख को एक समान समझने का संतुलन साध लिया था, उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था, एक दिन जैसे सबकी मृत्यु होती है वैसे उसकी भी मृत्यु हुई।
उसकी आत्मा को यमलोक लाया गया, यमराज के पाप पुण्य का हिसाब किताब रखने वाले अकाउंटेंट चित्रगुप्त ने लेखा जोखा करके यमराज को बताया –“प्रभु इस मनुष्य ने जीवन भर न कोई पुण्य का काम किया है! और न ही कोई पाप किया है! यह बस अपने पापी पेट को भरने के करम में ही लगा रहा, अब बताइए इसको कहां भेजा जाए यमलोक में दो ही ऑप्शन है.. पुण्य करो तो स्वर्ग ,पाप करो तो नर्क, प्रभु आपने तीसरा ऑप्शन बनाया ही नहीं है” ।
यमराज कंफ्यूजिया गये, यह कैसी मुसीबत आन पडी यह क्या बला है ,न इसने स्वर्ग लायक कोई काम किया है , न नर्क में पकौड़ा बनाकर तला ऐसा जाए कोई काम किया है, बड़ी देर सोचने विचारने के बाद चित्रगुप्त से बोलें — “यार इसका बही खाता फिर से चेक करो कुछ तो पुण्य- पाप किया होगा “
चित्रगुप्त ने पूरा बहीखाता एक बार फिर से पलट डाला और यमराज को बताया–” प्रभु इसने एक बार सरकारी इमदाद खाने का पैकेट बट रहा था, तो इसने चीटिंग करके दो बार ले लिया इसके खाते में बस यही एक गुनाह है”
“ठीक है इसे दो दिन के लिए नर्क में डाल दिया जाए ” यमराज ने आदेश पारित कर दिया।
यमराज शाम को अपने लोक के कार्यों के सर्वे के लिए घूमते घूमते नरक पहुंच गए, वहां पर उन्होंने सुबह वाले आदमी को देखा, उसे गर्म तेल के कड़ाही में डाला गया है लेकिन वह आम आदमी न रो रहा है, न चिल्ला रहा है, शांत भाव से बैठा है… यमराज ने तत्काल चित्रगुप्त को तलब किया और उससे पूछा– “चित्रगुप्त यह क्या मजाक है इस आदमी पर आग असर क्यों नहीं कर रही क्या इसके पास कोई दैवीय शक्ति है “
चित्रगुप्त हाथ जोड़कर बोला-” प्रभु इस मनुष्य के पास कोई दैवी शक्ति नहीं है यह धरती पर रहने वाला आम आदमी है यह दिन भर 45 डिग्री टेंपरेचर में खेतों में मजदूरी करता है जाड़े की कड़कड़ाती ठंड में भी यह उसी तरह अपना पेट भरने के लिए काम करता है. इसको खाने को बस दो रोटी मिल जाए उसको ही सुख समझता है, इसको हम लोग अपने नर्क के यातना नियमों से कष्ट नहीं पहुंचा सकते, क्योंकि उससे ज्यादा यह पृथ्वी पर कष्ट झेलता है और उसका आदी है, हम लोग जितना इसे कष्ट पहुंचाएंगे उससे ज्यादा तो धरती पर भोगता है, हर बार सत्ता में बैठे लोग इससे छल करते हैं, इसकी गाढी कमाई लूट लेते हैं, हर दिन इसे एक नए मुसीबत का सामना करने की आदत है” कहकर चित्रगुप्त ने हाथ जोड़ लिया ।
यमराज विचार करने लगे लगता है ,नरक में यातना देने का गुण धरती वालो से सीखना होगा, सरकारी कर्मचारियों से सीखना होगा, वरना नर्क को नर्क मानेगा कौन!!
— रेखा शाह आरबी