जब आंखें आंखों से बात करतीं हैं।
रफ्ता रफ्ता दिल से मुलाकात करतीं हैं।
जब हो जाता है यकीं इक दूजे पर।
फिर जाहिर अपने जज़्बात करतीं हैं ।।
दिल कह देता है अपने दिल की बात।
बहाने से यक़ीनन मुलाकात करतीं हैं।।
बैठ जाते हैं तन्हा कहीं महफ़िल से दूर।
चुपके से मुहब्बत की बात करतीं हैं।।
किये जातें हैं वादे लेकर हाथों में हाथ।
बारहा मिलने के हालात करतीं हैं।।
जब तलक होती नहीं पूरी दिल की आस।
कसमें वादें वफ़ा की बातें याद करतीं हैं।।
कहता है कवि अपने हालात जिस तरह।
खुदाया खुद से ही कलम का साथ करतीं हैं।।
— प्रीती श्रीवास्तव