कविता

कुछ रिश्ते

मिल जाते हैं कुछ अनजान
हो जाती फिर जान पहचान
शायद रह गया कुछ अधूरा सा
दे  जाते  वह अपने  निशान|
सभी रिश्तो से है यह परे
उनको परिभाषित कैसे करें
चाह नहीं कुछ भी पाने की
ख्यालों में  वो ही उभरे|
दिनचर्या का वह अभिन्न अंग
दो पल का ही मिलता है संग
छोड़ जाते  वो  निशान गहरे
जैसे मेहंदी छोड़ जाती है रंग|
शायद ही हम कभी मिले
टूटे ना कभी यह सिलसिले
सफर है सुप्रभात से शुभ रात्रि का
क्यों नहीं इसे  हंस कर  जी लें|
— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]