लघुकथा

जन्म कुंडली

पति विहीना ममता के बेटे रवीश ने जब बचपन से साथ पढने वाली रुक्मा से आर्य समाज में अंतरजातीय विवाह वो भी अमावस्या के दिन (शुभ कार्य वर्जित) कर लिया तो घर वालों ने आसमान सर पर उठा लिया | ना कुल देखा ना कुंडली मिलाई ऊपर से काली पीली अमावस्या ; परमात्मा ही मालिक है इसका सुन सुनकर ममता डर जाती सोचती मेरा तो घर उजड़ गया अब बेटे को मन माफिक लड़की मिली है घर संसार सलामत रहे|
दादा का लाड़ला पोता तो उन्होने अच्छा मुहुर्त निकलवा विधी विधान से शादी करवा मन की तसल्ली की फिर भी ममता का मन अज्ञात भय से आशंकित रहता |
समय बीतते देर नहीं लगती बेटा दो सुंदर बेटियों का बाप बना और सुखी गृहस्थ जीवन जी रहा है और जीवे भी मन कुंडली जो मिली थी .इतना सुखी दाम्पत्य तो उनका भी नहीं था जिनका समाज में पूरे रस्मो रिवाज से कुंडली मिलान कर (सताइस गुण) हुवा था |
पति को शादी के कुछ सालों बाद बीमारी ने घेर लिया लेकर ही  गई. पर बेटे बहु की बचपन की प्रगाढ मैत्री प्रगाढ प्रेम में परिवर्तित हो गई और वे सुखी जीवन जी रहे थे उनको हंसता सुखी सुखी देख ममता भी आश्वस्त  सुखी|
— गीता पुरोहित 

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,