कविता

याद हूँं मैं

तुम  भूल  गए हो या याद हूंँ मैं
अपनी धुन में खोए हुए रहते हो ,
मन में आस लिए , तेरी राह में ,
पलकें बिछाए बैठी रहती हूँ ‌।
कहीं खो गई  हूंँ  या याद हूंँ मैं
तुम्हारे दिल की बात , अब मुझ तक नहीं पहुंँचती ,
न फोन , न मैसेज , इंटरनेट के दौर में भी ,
हम बेगाने से लगते हैं ,
बीते पल को याद करके दिल से लगा कर बैठी हूंँ।
तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैं
आपाधापी में रहते हो ,
खाई थी हमने कसमें , जीवन के सफर में साथ मिलकर चलेंगे ,
टूटी हुई यादों के सहारे , आज भी
  ज़िंदा हूंँ मैं
तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैं
— चेतनाप्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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