कविता

रावण-रावण

हर साल जलता है रावण।
बचपन में अखबार में पढ़ते थे,
और आज कल सोशल मीडिया पर कि,
जला दो अपने अंदर का रावण।
यह भी पढ़ते आए कि
होती है सत्य की विजय।
और यह भी कि
बुराई का होता है अंत ऐसे ही – रावण की तरह।
हालांकि,
यह सब कभी देखा नहीं।
झूठ बोलकर ही होती है हासिल जीत अब।
किस घर में भाई-भाई लड़ते नहीं।
कौन छोड़ कर जाता है पुरखों की जायदाद।
एक पत्नी व्रत की बजाय ले रखा है पतन व्रत।
मर्यादाएं याद कहां से हों?
हम कहते रहते हैं रावण-रावण।
जलाओ रावण।
कहाँ कहते हैं कि
बनो राम।

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

नाम: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी शिक्षा: विद्या वाचस्पति (Ph.D.) सम्प्रति: सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान) साहित्यिक लेखन विधा: लघुकथा, कविता, बाल कथा, कहानी सर्वाधिक अकादमिक प्रमाणपत्र प्राप्त करने हेतु तीन रिकॉर्ड अंग्रेज़ी लघुकथाओं की पुस्तक के दो रिकॉर्ड और एक रिकॉर्ड हेतु चयनित 13 पुस्तकें प्रकाशित, 10 संपादित पुस्तकें 33+ शोध पत्र प्रकाशित 50+ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त फ़ोन: 9928544749 ईमेल: [email protected] डाक का पता: 3 प 46, प्रभात नगर, सेक्टर-5, हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान) – 313 002 यू आर एल: https://sites.google.com/view/chandresh-c/about ब्लॉग: http://laghukathaduniya.blogspot.in/