वक्त संग कारवां
वक्त संग दर्द-ए कारवां मेरा गुज़रता जा रहा था
दिल तेरे लौटने कि उम्मीद आज भी लगा रहा था।।
जानती हूं तुम मुझे छोड़ कर पराई बांहों में समाए
तोड़ मुझको बता कैसे तेरा दिल मुस्कुरा रहा था।।
सात फेरों के बंधन हमारे बीच बंधे हैं रिश्ते में
इन बंधनों से छल किया तू यही दर्द सता रहा था।।
मेरी हर ख्वाहिशों का क़ातिल आज तू ही तो
अपनी ख्वाहिशों को दबा दिल आंसू बहा रहा था।।
जानती हूं बेवफा लौट ना अब पाएगा कभी
फिर भी मेरा जख़्मी दिल लिख तुझे सजा रहा था।।
चाहती थी जाने ये जमाना मेरी भी दर्द-ए दास्तां
जमाना वीणा दर्द-ए शायरा नाम दे मुझे बुला रहा था।।
दर्द देकर आंसूओं से भिगोया हे तूने ही मेरा दामन
तेरे सलामती के लिए दामन उठाया ना जा रहा था।।
वक्त संग दर्द-ए कारवां मेरा गुज़रता जा रहा था
दिल तेरे लौटने कि उम्मीद आज भी लगा रहा था।।२।।
— वीना आडवाणी तन्वी