कविता

कविता – रंग लहू का लाल देखा

धर्मों की आड़ में इंसान, चलता  कुचाली चाल  देखा।
चहुँ  और फैला था ज़मी पे, रंग  लहू  का लाल देखा।
लड़ लड़ के मर रहे थे, अपने अपने  महजब के राही,
तड़फ  रही मां के सीने का, बेमौत मरता  लाल देखा।
सींच कर  पाला था  जिस को, बड़े  शौक से माली नें,
नोच डाला काफिरों नें, एक बगिया का  गुलाल देखा।
दंगा फसाद महजब तो अब बन गया एक खिलौना है,
इंसान बना  दरिंदा खुद में, ऐसा आज का हाल देखा।
इंसान हैवान बना फिरता, मार काट आज पेशा  हुआ,
राजनीति का घटिया मुखौटा,पहने यहाँ  दलाल देखा।
आजाद देश में  अब घुटन, गुलामी की  तरह बढ़  रही,
गरीब  पीसता चक्की में है, नेता को लालो लाल देखा।
मौज मारते नशे के सौदागर,आशीर्वाद उपर से मिलता,
बेकार आदमी निखट्टू अनपढ़, आज मालो माल देखा।
डिग्रियां ले कल सड़क नापता,रोज़गार की हालत मंदी,
फट्टे  हाल बदहवास घूमता, इस देश का है लाल देखा।
धन -दौलत पास है  जिन के, अय्याशी के अड्डे  उन के,
अवला की इज्जत लूटें, वहशियों का माया जाल देखा।
सुबह मिली तो शाम की सोचे, दर दर रोटी मांग रहा है,
मर मर के नित जी रहा है, गरीब  बेचारा बेहाल  देखा।
— शिव सन्याल 

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995