असम में हिंदी के विकास में हिंदीभाषियों का योगदान:लेखक के समर्पण का साक्षी
महाभारत में असम का उल्लेख प्रागज्योतिषपुर के रूप में मिलता है। कालिका पुराण में भी कामरूप–प्रागज्योतिषपुर का वर्णन मिलता है। असम पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है I यह प्रदेश अनेक संस्कृतियों और सभ्यताओं का संगम है I श्रीमंत शंकरदेव की इस पुण्य भूमि में अनेक संस्कृतियां, सभ्यताएं, विचारधाराएं और परम्पराएं घुलमिलकर दूध में पानी की तरह एकाकार हो गई हैं I हिंदी अपनी सरलता, आंतरिक ऊर्जा और जनजुड़ाव के बल पर यहाँ निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है I असम की विभिन्न भाषाओं-बोलियों के रूप, शब्द, शैली, वचन-भंगिमा को ग्रहण व आत्मसात करते हुए हिंदी का रथ आगे बढ़ रहा है I असम में हिंदी के रथ को गतिमान करने में हिंदी के साहित्यकारों और हिंदीभाषियों की महत्वपूर्ण भूमिका है I प्रदेश के आर्थिक और शैक्षिक विकास में भी हिंदीभाषियों का उल्लेखनीय योगदान है I हिंदीभाषियों ने अपने खून-पसीने से असम की धरती का अभिसिंचन किया है, लेकिन उनके अवदानों की चर्चा बहुत कम होती है I यह हर्ष का विषय है कि श्री सौमित्रम जी ने अपनी सद्यःप्रकाशित पुस्तक “असम में हिंदी के विकास में हिंदीभाषियों का योगदान” में हिंदीभाषियों के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया है I सौमित्रम जी विगत तीन दशकों से असम में रह रहे हैं और अपनी लेखनी के द्वारा असम के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर कर रहे हैं I “असम में हिंदी के विकास में हिंदीभाषियों का योगदान” शीर्षक पुस्तक सौमित्रम जी के निरंतर अध्ययन, शोध, साधना, जिज्ञासा और समर्पण का प्रतिफल है I इस पुस्तक में हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार और उन्नयन में अपनी मेधा-समिधा अर्पित करनेवाले हिंदी सेवियों और साहित्यकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है I पुस्तक को पाँच खंडों या अध्यायों में विभाजित किया गया है जिनके नाम हैं-समर्पण, संरक्षण, संभावना, वातायन और पुनश्च I समर्पण अध्याय में दिवंगत हिंदी सेवियों के व्यक्तित्व व योगदान का विवेचन किया गया है I जिन साहित्यकारों और हिंदीसेवियों ने असम में हिंदी के पल्लवन-पोषण में अपना योगदान दिया, लेकिन अब वे कीर्तिशेष हो चुके हैं उनके व्यक्तित्व-कृतित्व का अनुसंधानपरक विवेचन इस अध्याय के अंतर्गत किया गया है I इस अध्याय में असमिया के उन विद्वानों की भी मूल्यांकनपरक विवेचना की गई है जिन्होंने असमिया साहित्य व संस्कृति के उन्नयन में महती भूमिका निभायी I पूर्वोत्तर के साहित्यं, संस्कृमति, समाज व आध्या्त्मिाक जीवन में श्रीमंत शंकरदेव का अवदान अविस्मवरणीय है । उन्होंउने असम में एक मौन अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया । उनके महान कार्यों ने इस क्षेत्र में सामाजिक-सांस्कृंतिक एकता की भावना को सुदृढ़ किया । सौमित्रम जी ने इस पुस्तक में श्रीमंत शंकरदेव के व्यक्तित्व व कृतित्व की प्रामाणिक विवेचना प्रस्तुत की है I श्रीमंत शंकरदेव के अतिरिक्त इस अध्याय में चन्द्रभूषण शर्मा, यमुना प्रसाद श्रीवास्तव, बाबू बैकुंठ सिंह, कामाख्या प्रसाद त्रिपाठी, कुबेरनाथ राय, डॉ कृष्ण नारायण प्रसाद ‘मागध’, डॉ धर्मदेव तिवारी ‘शास्त्री’, राकेश पाठक, डॉ प्रमथनाथ मिश्र सहित 23 हिंदी सेवियों और साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं योगदान का ईमानदार विश्लेषण किया गया है I ‘संरक्षण’ अध्याय के अंतर्गत ऐसे हिंदी सेवियों और साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है जिन्होंने असम में हिंदी भाषा और साहित्य की श्रीवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और वे अभी भी सृजनरत हैं I इस अध्याय में 29 साहित्यकारों और हिंदीसेवियों के रचनात्मक अवदान का मूल्यांकन किया गया है जिनमें डॉ सत्यदेव प्रसाद, डॉ महेंद्रनाथ दुबे, उदयभानु पाण्डेय, डॉ सुधा श्रीवास्तव, नूतन पाण्डेय, डॉ हरेराम पाठक, चितरंजन भारती, रत्नेश कुमार, रवि शंकर रवि, पंकज मिश्र ‘अटल’, दिनकर कुमार, वीरेन्द्र परमार आदि प्रमुख हैं I ‘संभावना’ अध्याय के अंतर्गत आठ हिंदी सेवियों और साहित्यकारों की रचनात्मकता की पड़ताल की गई है जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा हिंदी के उज्ज्वल भविष्य की संभावना जगाई है I ऐसे संभावनाशील रचनाकारों में सुरेन्द्र सिंह, सरिता सिंह ‘स्नेहा’, डॉ कामाख्या नारायण सिंह प्रभृति साहित्यकार और हिंदी अनुरागी प्रमुख हैं I ‘वातायन’ अध्याय में ऐसे हिंदीसेवियों को शामिल किया गया है जो नौकरी के सिलसिले में असम में आए और कुछ समय के बाद सेवानिवृत्त या स्थानांतरित होकर चले गए, लेकिन असम प्रवास के दौरान उन्होंने हिंदी के उन्नयन के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए I भले ही इन हिंदीसेवियों की कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा हिंदी के विस्तार एवं उन्नयन में अपनी भूमिका निभायी है I इस अध्याय में बारह हिंदीसेवियों के व्यक्तित्व-कृतित्व का संक्षिप्त विवेचन किया गया है जिनमें डॉ एन.के.मिश्रा, अजयेंद्र नाथ त्रिवेदी, विनय कुमार ‘बुद्ध’, रामानंद राय आदि प्रमुख हैं I पुस्तक का अंतिम अध्याय ‘पुनश्च’ है जिसमें डॉ नंदकिशोर सिंह, डॉ ओम प्रकाश गुप्ता और अंजु साहू जैसे तीन हिंदीसेवियों और साहित्यकारों के योगदान पर प्रकाश डाला गया है I
सौमित्रम जी की पुस्तक “असम में हिंदी के विकास में हिंदीभाषियों का योगदान” अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है I यह पुस्तक दिवंगत हिंदीसेवियों और साहित्यकारों के प्रति श्रद्धांजलि है जिन्होंने हिंदी की गंगा को प्रवाहमान करने के लिए भगीरथ प्रयास किए, लेकिन उनकी उपलब्धियों पर इतिहास की धूल पड़ी हुई थी I सौमित्रम जी ने ऐसे हिंदीनिष्ठ मनीषियों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है जिन्हें लोग विस्मृत कर चुके थे I सौमित्रम जी ने पुस्तक को अतिविस्तार से बचाने के लिए केवल पाँच हिंदीभाषी प्रदेशों यथा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और दिल्ली मूल के हिंदीसेवियों और साहित्यकारों को ही आधार बनाया है I यह पुस्तक सामान्य पाठकों के लिए तो उपयोगी है ही, उन शोध छात्रों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है जो हिंदी की दशा-दिशा पर शोध कर रहे हैं I आशा है कि सौमित्रम जी की सशक्त लेखनी इसी प्रकार हिंदी को समृद्ध करती रहेगी I
पुस्तक-असम में हिंदी के विकास में हिंदीभाषियों का योगदान
लेखक-सौमित्रम
प्रकाशक-लिपि कम्पोज, गुवाहाटी
वर्ष-2021
पृष्ठ-170
मूल्य-250/-