दोहे
बारिश का देखो कहर, फसल हुई बरबाद
सभी खरीदा कर्ज ले, बीज, कृषि यन्त्र, खाद
हलधर का सब लुट गया,बचा न कुछ भी पास
बारिश तू अब थम जरा, कहा देख आकाश
जो रोटी देता हमें, जो भरता है पेट
बारिश ने उसका किया, सब कुछ मटियामेट
नीर भरा है खेत में, रीते जल से नैन
चिन्ता उसको कर्ज की, आये कैसे चैन
जीवन संकट से घिरा, नीर भरा दालान
भरभाई कैसे करूं, हुआ फसल नुकसान
नही निवाला पेट में, भूखा है परिवार
फीस भरुं कैसे अभी, घाटा हुआ अपार
— शालिनी शर्मा