आओ बच्चो तुम्हें घुमाएं किताबों के शहर में।
शब्द फूल बन के महके खिले हुए गुलजार में।
ज्ञानवर्धक बातें मिलेंगी कागज़ पर लिख लेना।
शिक्षा देती मित्र बन के इन से तुम सीख लेना।
किताबों में छीपा हुआ है ज्ञान का भंडार भरा।
मन को बांध रखती हैं बच्चो इन में प्यार भरा।
देख चौखट किताबों की कितनी सुंदर लग रही।
सजी हुई हैं सलीके से यहाँ मानों मंदिर लग रही।
बैठो चिंतन करो घड़ी भर बहुत आनंद आएगा।
मोटू पतलू, चिंकू चाचू, पढ़ कर मन को भाएगा।
मनोरंजन किताबें करती हंसती और रुलाती हैं।
भाव मनसे जाग्रत होते, स्वर कंठों से गाती है।
आजादी के परवानों की पढ़ लो तुम कहानियाँ।
भगत सुखदेव राजगुरु की पढ़ लो तुम जवानियाँ।
झांसी की रानी मर्दन करती अंग्रेजों की धार को।
देश से फिर फिरंगी भागे थे मान अपनी हार को
ठंडक मनको देती किताबें शिखर भरी दुपहर में।
आओ बच्चो तुम्हें घुमाएं किताबों के शहर में।
— शिव सन्याल